प्रभु का प्राकट्य
प्रभु का प्राकट्य
चैत माह नवमी तिथि आई,
अवध में जन्में श्री राधुराई।
अवधपुरी में सजा है दरबार,
शोभा अजब बनी।।
प्रभु का रूप लगे बड़ा निराला,
अद्भुत अनुपम जग से न्यारा।
पांव पैजनियां कमर करधन,
अति प्यारा लगे राघव ललन।।
दधि,अक्षत ,दूर्वा, गंगाजल,
द्वार – द्वार सजी चौक सुगंधित।
अति मगन है आज सरयू की धार,
लहर मारे भर – भर कर।।
मात कौशल्या हर्ष से झूमें,
ललना को निज पुनि – पुनि चूमें।
राजा लुटावे हीरा जवाहरात,
महल है आज खुशियों भरा।।
जब – जब धर्म हानि होती है,
विप्र ,संत , सुर परेशान होते हैं।
प्रभु लेते मनुज अवतार,
धनुर्धारी , रघुनंदन ।।
धन्यवाद !