प्रणाम सर!
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शिक्षक:-शिक्षकौ-शिक्षका:
व्यक्ति व समाज में शिक्षा का प्रवाह।
प्रकाशित करे वह पन्ना जो है स्याह।
शिक्षा वह जो करे प्रशस्त हर राह।
मनुष्य के निर्माण की हथौड़ी व छेनी।
बिखरे बालों को समेटे, बना दे वेणी।
हर गुरु का गौरव से, लोहित हो माथा।
ग्रन्थ ही नहीं जीवन का भी हो ज्ञाता।
अक्षर और अंकों के ज्ञान से शुरू।
उस विराट ब्रह्म का भी है यही गुरु।
दान, जो महादान ज्ञान-दान है।
शिक्षा ही जीवन में जीवंत शान है।
हर रहस्य, सृष्टि का बंद है यहीं।
हर विशेष ज्ञान का ध्यान है यही।
ज्ञान और धन में कहते कौन है बड़ा!
धन को सम्भाल कौन करता है खड़ा?
धन ने सदा ही दर्प पाल रखे हैं।
और अहंकार भी उछाल रखे हैं ।
ज्ञान सर्वदा से विनम्रता सिखाये हैं।
धर्म,कर्म में सदा समग्रता निभाए हैं।
तमस से प्रकाश की, जो ओर ले चले।
बढ़ें परम बनें इसके हर ही सिलसिले।
अज्ञानता से ज्ञान की तरफ चलो चलें।
शिक्षकों को कर प्रथम प्रणाम तो भले।
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