प्रकृति में संगीत
प्रकृति में संगीत
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संगीत का अभिप्राय प्राय: वाद्य यंत्रों से लगाया जाता है, जिनके द्वारा एक प्रकार की मधुर गूंज पैदा होती है । तबला, बाजा ,वीणा बाँसुरी आदि न जाने कितने ही ऐसे उपकरण हैं जिनका आविष्कार हुआ है और जिनको एक विशिष्ट पद्धति से बजाने पर उनसे एक लय निकलती है, जिसे हम संगीत कहते हैं।
इस तरह संगीत की परिभाषा यह हुई कि किसी प्रकार से कोई मधुर गूंज या मधुर लय एक क्रम में अगर सुनाई पड़ रही है या उत्पन्न हो रही है, तो हम उसको संगीत कहते हैं। पता नहीं कब मनुष्य ने संगीत की खोज की होगी । कब उसके दिमाग में तबला बाजा ढोलक आदि कौंधे होंगे । कब उसको लगा होगा कि एक विशेष प्रकार की वस्तु पर अगर हम एक विशेष प्रकार से चोट मारेंगे, तो वह वस्तु एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न करेगी । इसी से तबले , ढोलक का आविष्कार हुआ। यह भी विचार हुआ होगा कि अगर हम उस में खिंचाव पैदा करें और तब उस पर थाप दें तो ध्वनि की गूंज और अधिक सुंदर और अधिक प्रभावी होगी।
बांसुरी को देखिए ! कितना सुंदर संगीत का साधन मनुष्य ने बना लिया । न जाने इतिहास के किस दौर में किसके दिमाग में यह आया कि एक बांस जैसी छोटी सी वस्तु में अगर हम कुछ छेद कर दें और उसमें फूंक मारें तो उससे भी संगीत पैदा हो जाएगा। फूंक मारने का काम चूल्हा जलाने के लिए प्रयोग में आता था, लेकिन उस फूंक से संगीत पैदा नहीं होता था। संगीत वातावरण में होता है और संगीत तब पैदा होता है जब उसके साथ मधुर ध्वनि हो। शोर को हम संगीत नहीं कहते। कर्कश आवाज को भी संगीत नहीं कहते।
संगीत में दो बातें जरूरी हैं। पहली मधुरता और दूसरी उस मधुरता को बार-बार दोहराना । उस मधुरता को बार-बार दोहराने में भी कई बार जब हम नए-नए प्रयोग करते हैं, तब उससे वाद्ययंत्र बनते हैं।
आपने कभी बारिश में बूंदों को धरती पर गिरते हुए देखा है ? उसे गौर से सुनिए! वह अपने आप में संगीत पैदा करती हैं। कितना सुंदर दृश्य होता है …बूंदे हल्के हल्के हल्के टप टप टप करते हुए धीरे-धीरे, आप भी सुनिए , एक विशेष अंतराल में आसमान से धरती पर गिरती हैं , इसी को संगीत कहते हैं ।
फिर बारिश थोड़ा तेज होती है। उसकी अपनी लय होती है।…. और घनघोर वर्षा ! उसकी तो कुछ ना पूछो ! मनुष्य के जीवन को मधुरता से भर देती है ।
जीवन में और प्रकृति में संगीत चारों ओर फैला हुआ है। केवल झरना गिरता है, तभी संगीत नहीं होता । जब नदी बहती है, तब उसके बहने में भी आप सुनो तो संगीत बहता है। हवा चलती है तो पेड़ संगीत उत्पन्न करते हैं। पशु पक्षी बोलते हैं तो उनमें संगीत पैदा होता है ।कौवों की कांव-कांव भले ही सबको संगीत न लगे, लेकिन कोयल की कूक शायद सभी को संगीत की दुनिया में ले जाएगी।
मनुष्यों में अनेक स्त्री पुरुष बहुत सुंदर आवाज के मालिक होते हैं। वह बोलते हैं तो संगीत की मधुर ध्वनि दूर-दूर तक गूंज पैदा करती है ।
सच पूछो तो हमारे शरीर के भीतर जो हृदय की धड़कन है , वह भी किसी वाद्य यंत्र से उत्पन्न संगीत से कम नहीं है । वह मधुरता और अनुशासन के साथ जब धड़कता है ,तो पूरे शरीर के भीतर संगीत की मधुर ध्वनि उत्पन्न करता है ।…और वही जब बेसुरा हो जाता है ,जब शरीर में हृदय की धड़कन लयबद्ध नहीं रहती , जब जीवन के भीतर -शरीर के भीतर – संगीत गायब हो जाता है, तो मनुष्य चिड़चिड़ा हो जाता है । उसका व्यवहार रुखा होने लगता है ।
पता नहीं किसी ने यह शोध किया या नहीं किया कि मनुष्य की मन:स्थिति उसके शरीर के भीतर हृदय की धड़कनों के साथ जुड़ी हुई होती है। हृदय की धड़कन जितनी व्यवस्थित होंगी और जितनी लयबद्ध होगी, मनुष्य को भीतर से उतना ही आनंदित करेगी। मनुष्य जब शांत अवस्था में बैठता है और अपने भीतर झांकता है ,तब एक संगीत उस शांति में अपनी पूरी प्राणवत्ता के साथ उपस्थित हो जाता है। वह कहां से आता है – कोई नहीं जानता । लेकिन वह संगीत इस संपूर्ण सृष्टि में विद्यमान है । किसी प्रकार से हम उसे खोज कर ले आते हैं और संगीत की उस ध्वनि के साथ सामंजस्य में बैठकर अपने जीवन को धन्य कर लेते हैं।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर( उत्तर प्रदेश)
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