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8 Aug 2020 · 1 min read

प्रकृति प्रेम लुटाती है, गीत प्रेम के गाती है

जब आता है बसंत धरा पर, प्रकृति प्रेम लुटाती है।
जब आती है बर्षा रानी,कल कल गीत धरा गाती है।
जब आती है ग्रीष्म ऋतु, अंतर्मन हो तप जाती है।
शरद शीत में शीतलहर से, नाना अन्न पकाती है।
गर्मी बर्षा शीत ऋतु का, चक्र भी बड़ा सुहाना है।
जीवन चक्र चलाने का, ईश्वर का पैमाना है।
जीवन भी है धूप छांव, सुख दुख चलता रहता है।
आते हैं गम और खुशी, आंखों से झरना बहता है।
नहीं परिधि बाहर जीवन,जन्म मृत्यु चलते रहता है।
सदा आनंदित रहें धरा पर, चक्र गति करते रहता है।

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
11 Likes · 2 Comments · 359 Views
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