‘प्यारी ऋतुएँ’
प्रकृति के देखो खेल अजब हैं,
इसके तो हर दृश्य ग़जब हैं।
प्रत्येक ऋतु होती अलबेली,
अपने में खुद होती पहेली।।
आए ग्रीष्म तो छाया भाए,
हमने छायादार वृक्ष लगाए।
बरखा से हरियाली छाई,
कीट पतंगों की बन आई।।
शरद की महिमा अति ही निराली,
पकवानों से भर दे थाली।
ओस बिंदु बिछते चमकीले,
घास पात लगे छैल-छबीले।।
शिशिर में मिल-जुल तापें आग,
रेवड़ी गुड़ और भुने अनाज।
बसंत ऋतु के अंदाज अनोखे,
बाग-बगीचों के सजे झरोखे।।
हर ऋतु का होता अहसास,
जीवन में भरता उल्लास।
हर ऋतु के रंग में रम जाएँ,
भिन्न-भिन्न आनंद फिर पाएँ।।
– गोदाम्बरी नेगी