पुरी के समुद्र तट पर (1)
पुरी के समुद्र तट पर
हो चुका है सूर्योदय
मछुवारों की नावें
आ गयी हैं किनारे
जाल में फंसी हैं
रंग-बिरंगी मछलियाँ,
केकड़े,घोंघे,सुंदर सीप,
और भी बहुत कुछ
उठाता हूँ एक केकड़ा
अच्छी तस्वीर आती है,
फिर उठाता हूँ
एक छोटी सुनहरी मछली
दूसरी तस्वीर के लिए,
अचानक
एक मत्स्यगंधा पकड़ लेती है
मेरा दूसरा हाथ और
थमा देती है
एक लम्बी सुन्दर मछली
‘इसे पकड़ कर तस्वीर खिंचाइए’
रोमांचित हो उठता है तन-मन
सिहर जाता हूँ मैं
याद आते हैं महर्षि पराशर,
फिर, सम्राट शांतनु,
कहीं, तीसरा मैं तो नहीं?
© शैलेन्द्र ‘असीम’