पुरानी यादें (उत्तर)
श्रृंगार छंद 16 मात्राएँ
आदि में त्रिकल अंत गुरू
पुरानी यादें
*************
सरल सुन्दर सुकुमारी रमा ।।
नई कोंपल सी प्यारी रमा ।।
नेहकारी हितकारी रमा ।
मुझे कर देना दिल से क्षमा।
तुम्हारी मिली फ्रेंड रिक्वेस्ट।
बचा क्या है देने को टेस्ट।
ठूंठ हो गये प्यार के झाड़।
रखे हैं सिर पर बोझ पहाड़।
साथ में पढ़ते थे कालेज ।
हमारी अल्हड़ पन की ऐज ।
एक दूजे में ऐसे लगे ।
नहीं रहते हैं जैसे सगे ।
लिप्त कुछ ऐसा तुझमे हुआ।
किताबों को बिल्कुल ना छुआ।
तुझे पाने की ठानी ठान ।
फाइनल इयर किया बलिदान।
सभी सामाजिक संकट झेल।
रहे दौडाते अपनी रेल।
पेड़ से ऐसी लिपटी बेल ।
हुआ बीए में फिर से फेल ।
मगर तुम हुई अचानक गोल।
उडी ज्यों मैना पिंजरा खोल।
तुम्हारा पता लगाते हार।
लगा टूटे जीवन के तार ।
हुआ मन मेरा भारी खिन्न ।
मिटाये सभी याद के चिन्ह।।
छिपे पत्रों को अर्जित किये
नदी में जाय विसर्जित किये ।
पिताजी चिंता में थे बड़े ।
हमारे लच्छन बिगड़े खड़े ।
कदम नहिं कोई गलत उठाय।
हाथ से लड़का निकल न जाय।
बदलने मनोभाव की राह।
हमारा किया फटाफट ब्याह।
चाहकर तुम्हें नहीं पा सके ।
मधुर संगीत नहीं गा सके ।
फसे चूडी बिंदी में रहे ।
भाव दिल के हिंदी में कहे
भाग्य के ऐसे फीचर सने ।
पुत्र टीचर के टीचर बने ।।
रंग शादी का ऐसा चढ़ा।
रीतने लगा याद का घड़ा।
संग से पैदा हुआ विवेक ।
प्रगति वा ख्याति सब तरह नेक ।
सभी के हुए समय से काज।
सभी के दो दो बच्चे आज ।
हमारा हुआ देश में नाम।
छंद रच डाले विविध तमाम।
नहीं सोचा सपने इकबार।
हुआ जो घर में हाहाकार।
शोक में धरती अंबर भरा।
दिसम्बर जुल्म गजब का करा।
गुरू का साथ छोड़ मजधार।
गई पत्नी परलोक सिधार।
हो गया सभी सुखों का अंत।
लगे पतझड़ सा खास बसंत।
समय की वही पुरानी चाल ।
एक से हम दोनों के हाल ।।
एक दूजे के आयें काम।
भजें अब मिलकर जय सिया राम
कभी शिमला ऊँटी का प्लान।
कभी गोवा में अमृत पान ।
बनाया कहीं नहीं जा सके ।
प्यार का गीत नहीं गा सके।
आज लंबे अरसे के बाद।
वही दिन फिर आते हैं याद
कहो तो फिर से करें विचार।
चलें अब काशी या हरिद्वार।
बोलता है मन का गुरु द्रोण ।
एक जैसे हों अपने कोण ।
बताना जो भी जैसा जमे।
जिंदगी जिस बिंदु पर थमे ।
छुआरा हुए भले अंगूर ।
फ्रेंड रिक्वेस्ट मुझे मंजूर।।
छोड़ कर सारे हर्ष विषाद।
तुम्हारा वही गुरू प्रसाद।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
24/10/22