पीड़ा में प्रकृति का मन
छिन्न भिन्न किया प्रकृति को,
भींग गये है उसके नयन।
तभी कोरोना तभी अधियाँ,
आफत आई है ये गहन।
मिली अमानत में हमको थी,
सतरंगी प्यारी प्यारी।
छेड़खान करके हम सबने,
रंगों का कर दिया दमन।
स्वर्ग से सुंदर धरती थी ये,
कल्पवृक्ष हर जंगल थे।
काट काट के जंगल हमने,
सुंदरता का किया हवन।
जंगल काटे , सागर पाटे,
हिंसा और रक्तपात किया।
देख रक्त की सरिता भू पे,
पीड़ा में प्रकृति का जहन।
झूठी तकनीकी के नाम पे,
भौतिकता की ख्वाहिश में।
दूषित धरती, दूषित वायू ,
दूषित कर डाला है गगन।
ईश्वर का साक्षात स्वरूप है,
हरी भरी कुदरत सारी।
अपनी संतानों का मरना,
कैसे कर ले भला सहन।
जल वायू आकाश अग्नि,
धरती सबके सब दूषित।
धुँआ धुँआ हर ओर बसा है,
व्यथित बहुत प्रकृति का मन।
संभल गये तो ठीक है वरना,
मिटेगी मानव की बस्ती।
ये आंधी तूफा बस संदेशे है,
संकट तो अब आयेंगे गहन।
प्रकृति के न परेय ऋषभ है,
मानव की कोई हस्ती।
पर्यावरण बचाओ मिलकर,
लगाओ अपना तन मन धन।
ऋषभ तोमर
अम्बाह मुरैना