*पीता और पिलाता है*
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।
ऐसे उसके होते हाल, लहरा लेकर चलता चाल।
नशे में रहता मस्त मलंग, बेच दिए सब खाट पलंग।
बके गालियांँ घूसे खाये, कभी भी नाली में गिर जाए।
पत्नी थी उसकी प्रेग्नेंट, पीने का था काम अर्जेंट।
मात-पिता समझाते उसको, उसको समझ न आता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।१।।
तोड़ चुका सब रिश्ते नाते, सिर पड़कर रोती माते।
इधर-उधर का करता टूर, रहता था पत्नी से दूर।
रहता था वो नशे में चूर, रहते घर में सब मजबूर।
एक दिन प्रसव का दर्द उठा, लाचार हो गये मात पिता।
बाई बुलाकर प्रसव कराया, आज दो बच्चों की माता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।२।।
पत्नी पड़ी है टूटी खाट, बन गया दो बच्चों का बाप।
घर में कोई खुशी नहीं, चेहरों पर कोई हंँसी नहीं।
पत्नी यदि कुछ कह पाती, पिटने की बारी आती।
जैसे तैसे दिन काट रही, बच्चों से दुख बांँट रही।
बच्चा बच्ची हैं दोनों उसके, खुद पहचान न पाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।३।।
बच्चा बच्ची बड़े हुए, काम करने को खड़े हुए।
मांँ एक एक पैसा जुड़वाती, गुल्लक में वो डलवाती।
बच्ची करती घर का काम, बच्चा देर से आता शाम।
धीरे-धीरे पैसे जमा हुए, बच्चे स्कूल जाने को खड़े हुए।
मौका पाकर फोड़ी गुल्लक, दोस्तों को शराब उड़ाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।४।।
घर नहीं कुछ खाने को, मरने के आसार हुए।
रोटी नहीं मिली किसी को, बीते दो दिन चार हुए।
मांँगने से न मिले उधार, घर में फाका हाहाकार।
जब चाहे तब करे लड़ाई, पीटे पत्नी बहन भाई।
लठ्ठ भी पड़ जाते उसको, जो बचाने आता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।५।।
अब भी नहीं बदले हैं तेवर, बिक गए सारे गहने जेवर।
गांँव में घूमें चक्कर काटे, बेमतलब परिवार को डांँटे।
घर में की की रोज लड़ाई, बच्चों की रिल गई पढ़ाई।
करता नहीं बिल्कुल वो शर्म, ऐसे उसके हो गये कर्म।
उधार लिया था इसने जिससे, वो मांँ बहन कर जाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।६।।
छोड़ी नहीं उसने कोई कसर, बेटी पर थी बुरी नजर।
बेटी हो चली जवान, हया दया का न कोई ध्यान।
मासूम निगाहें उम्र सोलह साल, मन में हलचल करती चाल।
रिश्ते नाते भूल गया वो, कामुकता में टूल गया वो।
अंधा होकर टूटा बेटी पर, हवस का शिकार बनाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।७।।
दांतों तले सबके उंँगली थी, दृश्य देखकर रह गए दंग।
लुट चुका था उसका सब कुछ, कौमार्य उसका हो गया भंग।
आस पड़ोसी ताने मारें, बचा न पाई लाज को।
बात का बतंगड़ बन जाता, बस बात चाहिए समाज को।
बैठा हुआ है बाप दरिन्दा, कहांँ तक वो गिर जाता है।
पीता पिता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।८।।
मांँ बेटा ने आकर देखा, खिसकी जमी जब दृश्य देखा।
लुटी इज्जत हो गई बर्बाद, हवसी बना बाप जल्लाद।
मांँ की आंँखों में गुस्से के शोले, डंडा लेकर आया भाई।
धराशायी हुआ बाप डंडे से, मांँ ने भी अपनी जान गंँवाई।
लथपथ पड़ी थी खून में बेटी, बाप मरा पड़ा खिजाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।९।।
दो घंटे में आया होश, बहन पड़ी थी जो बेहोश।
मासूम कली वो अपनों से, आज सरेआम वो हार गई।
जीने से अब नहीं फायदा, इज्जत तार तार हुई।
कहते रहो जो कहे नर नारी, घर अपने अपनों से हारी।
नजर बचाकर पी गई जहर, भाई खूब चिल्लाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।१०।।
दादी दादा पोता तीन शेष थे, तीन की हो गई विदाई।
दोनों थे आंँखों से अंधे, हार्ट अटैक से जान गंवाईं।
अब तो केवल भाई बचा था, मांँ बहन की आती याद।
आंँसू बहते हैं आंँखों से, हो गया सब कुछ बर्बाद।
मांँ बहन बिन नहीं जीऊंँगा, भाई डूब मर जाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर
मौज उड़ता है।।११।।
आंँखों में थे आंँसू सबके, गुजर गया सारा परिवार।
सोच समझ कर कदम बढ़ाना, सोचो समझो करो विचार।
ऐसी घटना घटती कितनी, कुछ पता चल जातीं हैं।
शर्म भय और लोक लाज से, ज्यादातर छुप जातीं हैं।
मलता फिरता हाथ मनुज अब, जब सब कुछ फिसल जाता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।१२।।
ऐसा हमने होते देखा, बात कोई भी झूठ नहीं।
इससे भी ज्यादा हो जाता, नशा करना ठीक नहीं।
नशा नाश की जड़ होती है, न घर परिवार उजाड़ो तुम।
आंँसू आ गए कहानी लिखकर, खुद को आप बचालो तुम।
इस कहानी से कुछ तो सीखो, दुष्यन्त कुमार सुनता है।
पीता और पिलाता है, दिन भर मौज उड़ाता है।।१३।।