पीकर जी-भर मधु-प्याला
रिमझिम-रिमझिम वर्षा रानी,
बरसे बूंदों की फुहार,
चारों तरफ़ हरियाली छाई,
आई सावन की बहार,
हरा दुपट्टा, हरी चुनरिया,
गोरी करके चली शृंगार,
मन करता है, पीछे चल दूंँ,
साथ करूँ, नौका-विहार;
हाथ मेंहदी, आंँखों में काजल,
चलती ऐसे बलखाती,
झुन-झुन करती पायल बजती
रेशमी जुल्फें लहरातीं,
मंद-मंद मुस्काती ऐसे
दिल में पंचम राग बजाती ,
मन करता है, छूकर देखूंँ ,
गुड़िया जैसी मन को भाती;
धवल चांँदनी जैसी शीतल
होठ शहद का है प्याला,
संगमरमर जैसी स्वच्छ छवि की
मृगनयनी सुन्दर मधुबाला,
बदन स्निग्ध सुकोमल उसके
आंँखें जैसी मधुशाला,
मन करता है, सुध-बुध खो दूंँ
पीकर जी-भर मधु-प्याला।
मौलिक व स्वरचित
श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)