पिता
कविता “पिता”
अपनी बीमारी को किसी से बताया नहीं,
किस हालत से गुजरे आप कभी जताया नहीं,
दु:ख में भी होठों पर मुस्कान सजाकर रखना,
तंगी में भी औलाद को रईस बनाकर रखना,
पेशानी पर कभी दर्द न दिखने दिया,
किसी भी हाल में जमीर न बिकने दिया,
अभावों में भी खुशियां बिखेरने की आपकी कला,
इतना टूट कर भी कोई संवर सकता है भला,
हमारी अच्छी नींद के लिए पिताजी कई रातें ना सोए हैं,
बच्चे कमजोर ना हो जाए इसलिए बंद कमरे में रोए हैं,
जिसने खुद का पूरा जीवन हम पर कुर्बान किया है,
पूज्य पिताजी के लिए हमने ये संकल्प लिया है,
उनकी आंखों में हम आंसू नहीं आने देंगे,
अपने पिता को वृद्धाश्रम नहीं जाने देंगे।
खुद से भी ज्यादा जिसे औलाद की चिंता है,
दुनिया में ऐसा शख्स अकेला एक पिता है,
अपने दम पर बस जरूरत के सामान लिए हैं,
पर पिता के पैसे से शौक पूरे किए हैं,
मंजिल के दोनों छोर मेरे हाथ में है,
क्योंकि मैं अकेला नहीं हूं पिताजी साथ में हैं,
कभी-कभी तो ये जीवन बेलगाम कुछ ज्यादा था,
पिता तुम्हारी डांटों ने ही अनुशासन में बांधा था,
मेरी उंगली पकड़ी और मंजिल को दिखा दिया,
जब मैं थक कर बैठ गया तो कंधे पर उठा लिया,
हमारे पालन में खपा दी जवानी,
झेली हैं आपने लाख परेशानी,
सच कहूं तो आप आकाश से भी बड़े हो पापा!
मैं हर जंग जीत लूंगा क्योंकि तुम खड़े हो पापा!!
कवि-हरेंद्र कुमार त्यागी