पिता बनाम बाप
पिता मान का नाम एक है, बाप है नाम पुण्य
एक सदा ही मित्र सा लागे, एक है डर का चिन्ह
दोनो तपते, जलते , खपते,रीढ घर की अभिन्न
हंसते खिलते सबसे मिलते पिता ना डांटे कोई दिन
डांट फटकार जिसपर फबता वो बाप प्रतिबिंब
गलती पर जो क्रोध ना लाए वो पिता का बिम्ब
झूठे से भी जो ना मुस्काए बाप लगे है जिन्न
मां सी ममता जो दिखलाए, पिता का ऐसा मन
कडक रूप मे जो बस जाए, बाप लगे कठिन
साथ मे खेले नाचे गाए, पिता डैड के सम चिन्ह
बाप सदा ही दूरी बनाए, सम्मान खास जतन
बच्चे खुलकर जो बतियाते, पिता को करे प्रसन्न
खुश रखने की बाप की कुंजी, सधा हुआ अनुशासन
बाप, पिता, या डैड, पिताजी सब परिवार के तारण
परिवार की टिकी है धूरी,इनके पुष्ठ कंधो के कारण
संदीप पाण्डे “शिष्य”