“पिता दिवस: एक दिन का दिखावा, 364 दिन की शिकायतें”
अरे वाह! पितृदिवस फिर आ गया, अब हम सब एक दिन के लिए ‘पापा प्रेमी’ बन ही जाते हैं। सोशल मीडिया पर सेल्फियों की बाढ़ आ जाएगी और हम यह साबित करने में जुट जाएंगे कि हम अपने पिता को कितना मानते हैं। पापा की परियां तो आज कुछ ज्यादा ही उछल कूद करेंगी ! पापा के भैरो भी अपनी भैरवी को इम्प्रेस करने के लिए दो चार सेल्फी डाल कर पितृ दिवस की खाना पूर्ती कर लेंगे. ! एक दिन के सेल्फी उत्सव में पिता का महत्व समझने की हमारी काबिलियत बहुत कुछ हमारे क्षीण होते जा रहे संस्कार और समर्पण की कहानी बयां करते है । सच्चाई यह है कि हम 364 दिन वापस अपने शिकायती मोड़ पर आकर पिता को वही पुरानी शिकायतें देने लग जायेंगे , “आपने मेरे लिए किया ही क्या है?” वाह रे आधुनिकता, वाह रे हमारी संवेदनशीलता!
‘पिता’ शब्द ही ऐसा है जोजिसकी स्थापित क्षवी हमारे मन मंडल में एक कठोर, सख्त और सख्त मिजाज वाले व्यक्ति की बना दी गयी है । कभी उस पिता के अंदर के भावुक दिल को किसी ने शब्द देने की कोशिश नहीं की। मैं सोचता हूं कि क्या पिता सब एक दिन के ही पिता हो गए हैं?
वह पिता जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी हमें अपने पैरों पर खड़ा रखने के लिए लगा दी, अपनी खुद की इच्छाओं का दमन किया, अपने अधूरे सपनों को बच्चों की आंखों में पूरा होते देखने की आशा की, उसी पिता को जब यह सुनने को मिले, ‘तुमने मेरे लिए किया ही क्या है’, तो सोचो उस पर क्या गुजरेगी।
मुझे याद है बचपन में पिता की डांट, फटकार, मार-कुटाई और हमें कूट कूट कर भरे हुए संस्कार । उस समय शायद हमें बहुत बुरा लगता था, गुस्सा आता था। हम पिता को कसाई समझते थे, खुद को कोसते थे कि हमें इसी घर में जन्म मिला। ऐसा पिता किसी को न मिले। एक बार गुस्से में हमने भी बोल दिया था, ‘पापा, आपने मेरे लिए किया ही क्या है।’ पापा एकदम चुप हो गए, कुछ नहीं बोले लेकिन उस दिन पापा बहुत दुखी थे। उनके एक दोस्त आए, पापा उन्हें अपना दर्द बयां कर रहे थे। हमने कह तो दिया लेकिन फिर हमें समझ भी आ गया कि हमने आज जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की है। लेकिन इतनी हिम्मत नहीं कर पाए कि पापा के सामने जाकर माफी मांग सकें। उनके दोस्त ने मुझे बुलाया और कहा, ‘बेटा, ये पिता हैं। तू अपनी खाल की जूती बनाकर भी पिता को पहना दे, तब भी उनके अहसानों का बदला नहीं चुका सकता।’
खैर बचपन और पूर्ण युवा होने के बीच का किशोरावस्था का समय ,जब हारमोन का तेज प्रवाह मनस्थिति को भी चंचल चलायमान बना देता है,एक भावना काफी समय तक स्थिर नहीं रहती,तो हमें भी हमरी गलती का पश्चाताप ज्यादा दिन नहीं रहा,धीरे धीरे वापस पापा की टोका टाकी डांट फटकार को अपनी नियति मानकर मन ही मन कुंठित होते रहे.
खैर वक्त तेजी से बदला। पापा की जिद, मेहनत समर्पण और फाकाकशी की स्थिति में भी कभी हमें अभाव महसूस नहीं होने देने की उनकी हिम्मत ने हमें आगे बढ़ने को विवश किया । मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, MBBS की डॉक्टर बन गए। शादी भी हो गई, बच्चे हुए। जब बच्चे बड़े हुए तो कहते हैं न, आपका किया हुआ बूमरैंग की तरह आपके पास आता है। उसी स्थिति में एक दिन मैं और मेरा बेटा आमने-सामने खड़े थे। बेटे के मुंह से वही शब्द निकले, ‘पापा, आपने मेरे लिए किया ही क्या है।’ शरीर सुन्न , जैसे किसी ने जमीन में गाड़ दिया हो। मैं कुछ नहीं बोला, बस पापा के पास जाकर रोने लगा। पापा अपने हाथों से दिलासा देते हुए मुझे चुप करा रहे थे। समझ में आया, पिता क्या होता है, वह तब ही समझ में आता है जब तुम खुद पिता बन जाते हो।