पिता का पेंसन
इलाज और दवा,
सेवा में भी हिसाब,
वर्षो. से परंपरा बना,
एक–एक हिसाब पर सभी चौकन्ना,
पिता का पेंसन,
बंदरबांट करते संतान ।
कपडे–लत्ते पुराना,
नूतन नसीब कहा,
अब, बेटे के प्रयोगहिन पोशाक,
नये फैशन बना,
पिता का पेंसन,
बंदरबांट करते संतान ।
चचरी पर बैठा पिता,
टुकुर–टुकुर देखता,
कर कुछ न पाता,
मृत्युलोक के हैं प्रतिक्षा,
पिता का पेंसन,
बंदरबांट करते संतान ।
मृत्यु शैय्या पर पिता,
संतानो की झगडा,
संपत्ति की बांट बखरा,
अब, दागबत्ति पर भी हिसाब,
पिता का पेंसन पर,
बंदरबांट करते संतान ।
#दिनेश_यादव
काठमाण्डू (नेपाल)
#Hindi_Poetry