“पिता का घर”
“पिता का घर”
मेरे पिता का घर
कभी दादा का घर था,
उसमें चूहे-छछून्दर ही नहीं
गौरैयों का भी हो जाता बसर था।
आज मेरे घर की पक्की दीवारों
फर्श और छत में भी
लगती नहीं कोई कील,
ऐसे में चूहों की औकात क्या
गौरैयों का भी होता गुजारा मुश्किल।