*पाया-खोया चल रहा, जीवन का यह चक्र (कुंडलिया)*
पाया-खोया चल रहा, जीवन का यह चक्र (कुंडलिया)
_________________________
पाया-खोया चल रहा, जीवन का यह चक्र
कभी दृष्टि सीधी पड़ी, कभी काल की वक्र
कभी काल की वक्र, कभी कुछ पाकर छूटा
कभी सृजन है नव्य, बाद में वह भी टूटा
कहते रवि कविराय, नहीं रहती है काया
सब माया का रूप, छूटता जो-जो पाया
________________________
नव्य= नया
—————————————
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451