पापा को मैं पास में पाऊँ
जो भी कहना चाहते पापा
बिन बोले कह जाते पापा
उनके प्यार का अन्त न कोई
उनके जैसा संत न कोई
रिश्ता है एहसास का भाई
अटल अज़ब विश्वास का भाई
चिड़ियों की चूँ चूँ में चहकें
गुलशन की ख़ुशबू में महकें
सूरज चाँद सितारों के संग
इंद्रधनुष के ले आते रंग
लहरों के संग ताल मिलाते
सुर संगीत सुधा बरसाते
मेरे दिल की हैं वो धड़कन
सुलझादें पल में सब उलझन
जब भी थक कर मैं गिर जाऊँ
पापा को मैं पास में पाऊँ
सर गोदी में धर सहलाते
दर्द सभी वो हर ले जाते
छाया से संग रहते पापा
हाथ हमेशा गहते पापा
सतगुरु उनसा और न कोई
ईश्वर दाता रब हैं वोही
डॉ.प्रतिभा “माही”