पानदान दादी माँ का
बचपन में अच्छा लगता था,पानदान दादी माँ का
रक्खी होती थी उसमें कुछ,डिब्बी छोटी प्यारी प्यारी
जिसमें वो भरकर रखती थीं, कत्था, चूनाऔर सुपारी
छोटा सा वो प्यारा डिब्बा,था जहान दादी माँ का
बचपन में अच्छा लगता था,पानदान दादी माँ का
लेकर पत्ता हरे पान का, पहले कत्था चूना लगता
गुलकंद लगा स्वाद उसी का, तब हमको था दूना लगता
लाल लाल मुँह कर देता था,हरा पान दादी माँ का
बचपन में अच्छा लगता था,पानदान दादी माँ का
चुपके से वो पानदान हम,उठा वहाँ से लाते थे
कत्था चूना मिला मिला कर, हम भी पान लगाते थे
बँट जाता था जब थोड़ा सा,कभी ध्यान दादी माँ का
बचपन में अच्छा लगता था,पानदान दादी माँ का
08-12-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद