*पाते हैं सौभाग्य से, पक्षी अपना नीड़ ( कुंडलिया )*
पाते हैं सौभाग्य से, पक्षी अपना नीड़ ( कुंडलिया )
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पाते हैं सौभाग्य से , पक्षी अपना नीड़
मानव को कब घर मिला ,मिलती केवल भीड़
मिलती केवल भीड़ , अभागे फुटपाथों पर
रहे घुमंतू रोज , टिके रहते हाथों पर
कहते रवि कविराय , सुखी दिखने में आते
कोठी आलीशान , किंतु घर कब बन पाते
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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नीड़ = घोंसला