* पहेली *
** गीतिका **
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पहेली यहां अब बुझानी नहीं है।
कहानी नयी अब बनानी नहीं है।
नहीं है सरल जिन्दगी रह सकी जब।
स्वयं की सफलता छुपानी नहीं है।
छुपे राज है मुस्कुराहट लिए कुछ।
हकीकत किसी को बतानी नहीं है।
रहे फूल से मुस्कुराते अधर क्यों।
कभी बात कहकर निभानी नहीं है।
अटल यह हमेशा नहीं रह सकेगी।
बहुत काम की यह जवानी नहीं है।
समय पर बदलती रही जो कहीं भी।
बहुत मन लुभावन कहानी नहीं है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ३०/०९/२०२३