पहाड़ों की हंसी ठिठोली
जिस पहाड़ो में गूंज रही हैं हमारी हंसी ठिठोली।
जिन टीलों पर खेलकर भर जाती हैं खुशियों से झोली।।
हम पैदा हुए उस धरती पर यह हैं हमारे संजोग।
इस जालौर दुर्ग में कैसे गुम हो सकते हैं लोग।।
इस दुर्ग में पड़े हैं हमारे पैरों के निशान।
यह दुर्ग हैं हमारे जालोर की आन-बान-शान।।
दुर्ग पर चढ़कर होता है हिमालय सा एहसास।
वो पल हमारे लिए बहुत बहुत ख़ास।।
जिन टीलों को बनाते हैं हम फिसलन पट्टी।
वहा याद आ जाती हैं बचपन की कुछ खट्टी-मीठी।।
यहां दूर दूर से घूमने आते हैं लोग जालोर दुर्ग पर।
यह है जालोर की पहचान और जालोर की आन बान शान।।
हमारे जालोर में गुमेंगे नही लोग।
यहाँ की धूप भी मिटा देती हैं रोग।।
हमारा जालोर तो हमें खूब भाता है।
हनारा मन तो जालोर में ही लगता हैं।।
जालोर का दुर्ग हमारा गौरव है।
पहाड़ो की सोंधी खुशबू वाला सौरव है।।