चलो मनाएं नया साल… मगर किसलिए?
चलो मनाएं नया साल
मगर किसलिए?
मानो तो हर दिन
नया सवेरा लेकर आता है
न मानो तो नया साल भी देखो
वही पुरानी दास्तां आगे बढाता है।
वही सपने हैं, वही आदमी पुराना,
वही घर है,वही दफ्तर पुराना,
हां रौनक जरूर बदली है
लोगों के चेहरों की
नया साल मुबारक़ करते करते।
फिर भी वो ही चिंताऐं
दिमाग को घेरे हैं
जो कल भी ऐसे ही सताती थीं।
फिर नया क्या हुआ इसमें
जब हमारी मजबूरियां न बदली
नया साल मनाओ मगर जब
आपकी माली हालत सुधर जाए,
डूबती नैया को साहिल मिल जाए,
किसान को बर्बादी का डर न सताए,
जवान को दुश्मन का प्रेम पत्र आए।
जब मेरे देश में कोई भूखा न सोये,
जब मेरे देश में कोई कपडे को न तरसे
जब कोई रह में भीख न मांगे
जब कोई नागरिक दुनिया का
शरणार्थी बनने को मज़बूर न हो
जब कोई साथी हमारा
मानवाधिकारों से वंचित न होl
उस दिन मनाएंगे हम भी नया साल
जब नहीं तरसेगा कोई
खाना, पढ़ना, दवा और मकान को
मेरे देश में, आना तुम भी
हम भी कहेंगे तब
आओ चलो मनाये नया साल.
©️ रचना ‘मोहिनी’