पहचान ज़रा
कवि, कवित्त को पहचान ज़रा
शब्द लय मिला या किस बिम्ब छन्द
ढूढ़ता वो गान बह चली जिस धार
चल, उठ, फिर ठहर जाता मन्द – मन्द
भाव – विचार तत्व संचरित प्रज्ञा दीप में
तरंगित कर झंझा झंकोर – सी पंक्ति
शब्द – शब्द के उलट-पुलट में फँसी जा
वर्तनी वर्ण शब्द फिर कवित्त महल खड़ा
देखा, असमंजस में यह गीत या कविता
यह घटक किस दश इंद्रियों में देखे या संगीत रिद्म – लय में है या वो खेलें शब्दों के
अपरिचित थे अब भींगी परिचित – सी
शब्दों के रहस्यों में कौन अर्थ छुपाएँ खड़ा !
खेल – खेल में होता यहाँ सृजन कवित्त विधा सृजितकर्ता अमन में खिला दिया वो पुष्प
जो बिखर – बिखर कर बेसुर में रहती थी अकेला
स्वप्न या ख़्वाब में, देखो बीती काल
तू किस प्रतीक्षा में, है यहाँ करता कौन ?
दुनिया तेरी प्रतीक्षारत, उठ चल चलाचल
छू महासागर के तल ऊपर क्षितिज असीम