पल्लू पकड़े जाती
बिछड़ कर जा रहे साथी
यादें पल्लू पकड़े जाती
सन्नाटा छाया चहुँ दिशा
मैं किससे कह पाती
ये फूल भी हैं बिखरे……..
माला भी टूटी जाती
दिल की गुफा में पाले
सपने चीख कर जाती
यादों के वन, सूखे पत्ते
खामोश कर ज़ज्बात आती
लौटती सांझ उदास रही
तुम और मैं में चले जाती
पूछ रहे इक- दूजे का हाल
दोनों की नोक- झोंक आती
गूंथ रहे सुनहरे सपने उनके
यादें जब उनकी टहलने आती..
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शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा
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