पर्वत
पर्वत
खड़ा अडिग अजय सा वो अपनी सीमा को दर्शाता है
ना जाने कितने राज़ लिए वो वीरो सा मुसकाता है
करता रखवाली सदा दुश्मन से मान वो बढ़ाता है
है हिमालय उसका नाम जिसपे तिरंगा लहराता है
सैकडो जीव जंतु यहाँ सालों से विचरते है
लाखों करोड़ो वनस्पति यहाँ रोज़ ही पनपते है
संजीवनी बूटी जैसी औषधियो से कितनों की जान बचाता है
ये धरा पर ऋषि मुनियों का तपोवन कहलाता है
गंगा यमुना का श्रोत यहाँ से जीवन का संचार करे
देवों के देव महादेव भी इसके ऊपर वास करे
खनिज रत्नों को सुशोभित कर अपने अंदर समाता है
जहां आज तक कोई जा ना सका वो कैलाश कहलाता है