Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Mar 2017 · 4 min read

काव्य में सहृदयता

किसी भी प्राणी की हृदय-सम्बन्धी क्रिया, उस प्राणी के शारीरिकश्रम एवं मानसिक संघर्षादि में हुए ऊर्जा के व्यय की पूर्ति करने हेतु, हृदय द्वारा शारीरिक अवयवों जैसे मष्तिष्क, हाथ-पैर आदि के लिए रक्त संचार की सुचारू व्यवस्था प्रदान करना है, ताकि शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएँ चुस्ती और तीव्रता के साथ होती रहें।
भावात्मक या संवेगात्मक अवस्था में मनुष्य के शरीर एवं मानसिक अवयवों में जब उत्तेजना का जन्म होता है, तो इस स्थिति में लगातार ऊर्जा के व्यय से आने वाली शरीरांगों की शिथिलता, घबराहट, कंप, स्वेद आदि असामान्य लक्षणों को संतुलित करने के लिए हृदय को मस्तिष्क द्वारा प्राप्त आदेशों के अनुसार तेजी से रक्त-पूर्ति का कार्य करना पड़ता है, जिसे दिल के धड़कने के रूप में अनुभव किया जा सकता है। संवेगात्मक अवस्था समाप्त होने के उपरांत हृदय की धड़कनें पुनः सामान्य हो जाती हैं।
चूंकि किसी भी व्यक्ति की इंद्रियों से प्राप्त ज्ञान के प्रति संवेदनाशीलता का सीधा संबंध उसकी मानसिक क्रियाओं से होता है, जब यह मानसिक क्रियाएँ किसी भी वस्तु सामग्री को अर्थ प्रदान कर देती हैं, तब अपमान, प्रेम, करुणा, ईष्र्या, वात्सल्य, क्रोध, भय आदि के रूप में उत्पन्न ऊर्जा, अनुभावों में तब्दील हो जाती है। संवेदना में अनुभव तत्त्व जुड़ जाने के पश्चात् भाव के रूप में उद्बोधित यह ऊर्जा किस प्रकार अनुभावों में तब्दील होती है और इसका हृदय से क्या सम्बन्ध है? इसे समझाने के लिए एक उदाहरण देना आवश्यक है- जब तक बच्चे को यह अनुभव नहीं होता कि सामने से आता हुआ जानवर शेर है, वह उसका प्राणांत कर सकता है, तब तक उसके मन में भय के भाव जागृत हो ही नहीं सकते। बच्चे को ऐंद्रिक ज्ञान को आधार पर जब यह पता चल जाता है कि उसके सामने शेर खड़ा हुआ है और वह उस पर झपट सकता है तो उससे बचाव के लिए उसकी मानसिक क्रियाओं में तेजी आने लगती है। शेर के यकायक उपस्थित होने के कारण संवेग की अवस्था इतनी अप्रत्याशित होती है कि मस्तिष्क के तीव्रता से लगातार किए जाने वाले चिंतन से ढेर सारी ऊर्जा का यकायक व्यय हो जाता है। इस ऊर्जा-व्यय से उत्पन्न संकट की पूर्ति के लिए मस्तिष्क सुचारू रूप से कार्य करने हेतु अतिरिक्त ऊर्जा की माँग करता है। चूंकि ऊर्जा को प्राप्त करने का एकमात्र स्त्रोत रक्त ही होता है, अतः मस्तिष्क रक्तपूर्ति की माँग अविलंब और तेजी के साथ करने के लिये हृदय को संकेत भेजता है। परिणामस्वरूप हृदय की धड़कन में तेजी आ जाती है।
हृदय के विभिन्न संवेगों की स्थिति में धड़कते हुए इस स्वरूप के आधार पर ही संभवतः हृदय को सबसे ज्यादा संवेदनशीलता, भावनात्मकता, सौंदर्यबोध और रसात्मकता का आधार माना गया। और कुल मिलाकर यह सिद्ध कर डाला गया जैसे हर प्रकार के विभाव के प्रति संचारी, स्थायी भावादि की स्थिति हृदय में है, जबकि हृदय तो मात्र एक रक्त-संचार का माध्यम है। उसका संवेदना, भाव, स्थायी भाव आदि के निर्माण से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं।
काव्य के क्षेत्र में हृदय-तत्त्व की स्थापना का यदि हम विवेचन करें तो इसका सीधा-सीधा कारण नायक-नायिका के मिलन, चुंबन, विहँसन के समय हृदय का तेजी के साथ धड़कना ही रहा है। जिसका सीधा-सीधा अर्थ हमारे रसमर्मज्ञों ने यह लगाया होगा कि मनुष्य की मूल संवेदना, भावात्मकता आदि का मूल आधार हृदय ही है। जबकि किसी भी प्रकार की संवेगावस्था में हृदय की धड़कनों में तेजी आ जाना एक स्वाभाविक एवं आवश्यक प्रक्रिया है।
नायक और नायिका के कथित प्रेम-मिलन में हृदय इसलिए तेज गति से धड़कता है क्योंकि इस मिलन के मूल में जोश के साथ-साथ सामाजिक भय या व्यक्तिगत भय बना रहता है। लेकिन ज्यों-ज्यों मिलन की क्रिया पुरानी पड़ती जाती है, उसमें सामाजिक एवं व्यक्तिगत भय का समावेश समाप्त होता चला जाता है। यही कारण है कि नायक और नायिका के मिलन के समय हृदय की धड़कनों में उतनी तेजी नहीं रह पाती, जितनी कि प्रथम मिलन के समय होती है।
प्रेम के क्षेत्र में रति क्रियाओं के रूप में यदि हम पति-पत्नी के प्रथम मिलन को लें और उसकी तुलना अवैध रूप से मिलने वाले नायक-नायिका मिलन से करें तो पति-पत्नी की धड़कनों में आया ज्वार, नायक-नायिका की धड़कनों के ज्वार से काफी कम रहता है। इसका कारण पति-पत्नी में सामाजिक भय की समाप्ति तथा नायक-नायिका में सामाजिक भय का समावेश ही है।
इस प्रकार यह भी निष्कर्ष निकलता है कि पाठक, दर्शक या श्रोता की काव्य के प्रति ‘सहृदयता’ भी उसकी धड़कनों के ज्वार-भाटे से नहीं समझी जा सकती। चूंकि काव्य का क्षेत्र मानव के मानसिक स्तर पर उद्बुद्ध होने वाले भावों, स्थायी भावों का क्षेत्र है, अतः इस स्थिति में श्वेद, कम्प, स्तंभ जैसे सात्विक अनुभावों की तरह ‘सहृदयता’ एक आतंरिक सात्विक अनुभाव ही ठहरती है।
कोई भी प्राणवान् मनुष्य जब तक कि उसमें प्राण हैं, वह अपनी जैविक क्रियाओं के फलस्वरूप सहृदय तो हर हालत में बना रहेगा। उसमें उद्दीपकों की तीव्रता, स्थिति-परिस्थिति, उसकी मानसिक क्रियाओं की संवेदनात्मक, भावनात्मक प्रस्तुति के रूप में धड़कनों के ज्वार-भाटाओं का प्रमाण भी देगी, लेकिन इन तथ्यों के बावजूद इतना तो माना ही जा सकता है कि काव्य का रसास्वादन एक सहृदय ही ले सकता है। ऐसे सामाजिक से भला क्या उम्मीद रखी जा सकती है, जिसका हृदयांत हो गया हो?
—————————————————-
रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
Tag: लेख
390 Views

You may also like these posts

*बादल चाहे जितना बरसो, लेकिन बाढ़ न आए (गीत)*
*बादल चाहे जितना बरसो, लेकिन बाढ़ न आए (गीत)*
Ravi Prakash
तीन हाइकु
तीन हाइकु "फिक्र"
अरविन्द व्यास
कोशिशों  पर  यक़ी  करो  अपनी ,
कोशिशों पर यक़ी करो अपनी ,
Dr fauzia Naseem shad
सरकार भरोसे क्या रहना
सरकार भरोसे क्या रहना
Shekhar Chandra Mitra
अहंकार
अहंकार
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
मुझे इस बात पर कोई शर्म नहीं कि मेरे पास कोई सम्मान नहीं।
मुझे इस बात पर कोई शर्म नहीं कि मेरे पास कोई सम्मान नहीं।
*प्रणय*
तन को सुंदर ना कर मन को सुंदर कर ले 【Bhajan】
तन को सुंदर ना कर मन को सुंदर कर ले 【Bhajan】
Khaimsingh Saini
*सार्थक दीपावली*
*सार्थक दीपावली*
ABHA PANDEY
" हौंसला ही साथ देगा ----- "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
राम राम
राम राम
Sonit Parjapati
हर तरफ भीड़ है , भीड़ ही भीड़ है ,
हर तरफ भीड़ है , भीड़ ही भीड़ है ,
Neelofar Khan
एक सरल प्रेम की वो कहानी हो तुम– गीत
एक सरल प्रेम की वो कहानी हो तुम– गीत
Abhishek Soni
--> पुण्य भूमि भारत <--
--> पुण्य भूमि भारत <--
Ankit Halke jha
Bundeli Doha pratiyogita-149th -kujane
Bundeli Doha pratiyogita-149th -kujane
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
शोकहर छंद विधान (शुभांगी)
शोकहर छंद विधान (शुभांगी)
Subhash Singhai
"" *आओ गीता पढ़ें* ""
सुनीलानंद महंत
झगड़ा
झगड़ा
Rambali Mishra
चमक..... जिंदगी
चमक..... जिंदगी
Neeraj Agarwal
प्रकृति और पुरुष
प्रकृति और पुरुष
आशा शैली
ये हल्का-हल्का दर्द है
ये हल्का-हल्का दर्द है
डॉ. दीपक बवेजा
दुआ
दुआ
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
"प्यासा" "के गजल"
Vijay kumar Pandey
रिश्ता दिल से होना चाहिए,
रिश्ता दिल से होना चाहिए,
Ranjeet kumar patre
जो चलाता है पूरी कायनात को
जो चलाता है पूरी कायनात को
shabina. Naaz
जिस देश में लोग संत बनकर बलात्कार कर सकते है
जिस देश में लोग संत बनकर बलात्कार कर सकते है
शेखर सिंह
नाथ शरण तुम राखिए,तुम ही प्राण आधार
नाथ शरण तुम राखिए,तुम ही प्राण आधार
कृष्णकांत गुर्जर
लौट आओ तो सही
लौट आओ तो सही
मनोज कर्ण
पवित्र होली का पर्व अपने अद्भुत रंगों से
पवित्र होली का पर्व अपने अद्भुत रंगों से
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
धीरे-धीरे क्यों बढ़ जाती हैं अपनों से दूरी
धीरे-धीरे क्यों बढ़ जाती हैं अपनों से दूरी
पूर्वार्थ
इससे पहले कोई आकर के बचा ले मुझको
इससे पहले कोई आकर के बचा ले मुझको
अंसार एटवी
Loading...