परवाना
बन परवाना चहुँ ओर मडरायें
पंतगे सा नित शिखा झुलसाये
प्रीति की रीति है बहुत अनोखी
वही प्रेमी जो न कभी अलसाये
परवाने आँधी में जलना सीख
काँटों की क्यारी खिलना सीख
चाह गर तेरी आज सच्ची सी है
बिन मौत के अब मरना सीख
सुन परवाने आँख तेरी बसती
तूने ही लगाई है प्यार अरजी
हर अक्स मेरा अपने में देख
क्योंकि तुझमें रचती सजती
शौर्य तेरा मुझे परवाने पाने में
मुहब्बत की जंग जीत जाने में
कम नहीं है तू किसी सैनिक से
बस कुछ दूरी मेरे पास आने में
पत्थर शिला नही जो न पिघ लूँ
तू इतना प्यारा कि नाता कर लूँ
इक आयना सा बना तू मेरे लिए
तेरी पीर सारी परवाने मैं हर लूँ
आँखों ने तुझको कहाँ न ढूढा
हर डगर औ नहर पहाड़ पूछा
कस्तूरी सा बसा रहा तू मुझमें
परवाना बन कर तूने मुझे लूटा