पत्र
स्वीकार किया है दुःख सारा
सारा संकट…..सारी बाधा
जी चाहे तो कर देना
क्षण भर के लिए इसको आधा
पत्र तुम्हारे नाम लिखा
डाला है दान की पेटी में
गम के सिवाय कुछ है ही नहीं
क्या डालता मैं उस पेटी में
ज़ब पत्र तुम्हे मिल जाए तो
दे देना खबर के मिला तुम्हे
गर खबर नहीं दे पाए तो भी
होगा न कोई गिला मुझे
मन के पन्ने को पढ़ने वाले
कुछ आख़र पत्र का पढ़ लेना
बहाना भी बनाना होगा तुम्हे
तो अच्छा बहाना गढ़ लेना
मेरे लिए यह काफ़ी होगा
के पत्र मेरा पढ़ पाए तुम
अपनी कृपा की निगाहों के बल
मेरे हर दुःख पर चढ़ आए तुम
कृपा की निगाहें ज़ब भी बाबा
मेरे आख़र पर पड़ती होंगीं
जरा लिखने वाले का खयाल कर
तुमसे जरूर कहतीं होंगीं
मेरी नहीं उनकी सुन लो
या सुन लो दुआएं दाता की
मेरी अर्जी थी सो कह डाली
अब मर्जी तुम भाग्य विधाता की
क्या कागज को देखा तुमने??
हल्दी शुभता की लगाई है
मेरे पत्र में दुःख के आख़र पर
शुभता की भी परछाई है
अब शुभ – शुभ तय है मान लिया
के स्वप्न में पत्र तुम पढ़ते दिखे
हर दुःख के सिर पगड़ी सुख की
स्थिरता……वाली मढ़ते दिखे
स्वप्न सच हो… न…. हो पर
सपने में तुमको देख लिया
आशा, सुख, मोह की गठरी
बड़े दूर तलक मैं फेंक दिया
हकीकत करने का मन कर जाए
आहिस्ते से मुझे बतला देना
वो स्वप्न वाला रूप भी बाबा
हकीकत में दिखला देना
बस यही बात थी कह डाली
आगे का मेरा तुम जानों
जो ठाना था वो कह डाला
जो ठानना है वो तुम ठानों
-सिद्धार्थ गोरखपुरी