बँटवारा
आज़ादी का हाथ थाम कर
आया बटँवारा इस देश में।
तहस नहस कर दिया सब कुछ
जिसने पूरे भारत देश में।
जो दोस्त थे कभी वो लड़ने लगे थे
भाई से भाई बिछड़ने लगे थे।
अचानक सब मज़हबी बनने लगे थे
इंसानियत को सब भूलने लगे थे।
क्या मंज़र रहा होगा उस शाम को
जब मार रहे होंगे लोग अपनी सन्तान को।
लोग भाग रहे होंगे इधर उधर
अपनी जान बचाने को।
और कुचल रहे होंगे शायद
अपनों की लाशों को।
ज़ख्म भरे नहीं है अब तक
उस दर्दनाक शाम के
जब बट गया था यह देश
एक ही दिन और रात में।
जब उजड़ गए होंगे लोग
अपने ही जहान से।
जब बिछड़ गए होंगे लोग
अपने ही परिवार से।
नहीं यकीन हो तो मेरा
पूछ लो किसी भी इंसान से
कि क्या हुआ था उस दिन
जब बट गया था यह देश
एक ही दिन और रात में।
– श्रीयांश गुप्ता