पंचगव्य
पण्डित शीलभद्र जिधर निकलते गांव वाले क्या बूढ़े जवान बच्चे सभी चिढ़ाते और कहते पण्डित जी अब विशुद्ध नही रहे जब से रियासत मियां इनके ऊपर रंग लगाई दिहेन पण्डित शील भद्र को लगता कि उनके
#जले पर गांव वाले नमक ही छिड़क रहे है#
बात भी सही थी गांव वाले पण्डित जी के #जले पर नमक ही छिड़क रहे थे#
होली में रियासत अली के रंग लगाने की बात छेड़ कर पंडित जी खरी खोटी सुनाते कभी कभी ईंट पत्थर लेकर दौड़ाते ।
गांव से बात बाहर निकल कर जवार में फैल गयी कि पण्डित शीलभद्र को चिक रियासत अली ने होली में रंग लगा दिया वैसे तो पण्डित जी ने पंचगव्य खा कर अपने को शुद्ध कर लिया है किंतु पण्डित जी शुद्ध कैसे हो गए पण्डित जी को चाहिए कि हरिद्वार जाकर शुद्धि यज्ञ करे एवं विद्वत धर्माचार्यो से स्वंय के शुद्ध होने का प्रमाण पत्र लेकर आंए।
तभी पण्डित शीलभद्र से लोग अपने घर मरनी करनी यज्ञ पारोज आदि में पांडित्य कर्म कराए शीलभद्र और भी आग बबूला हो जाते होली के बाद जब भी पण्डित शीलभद्र की आहट भी रियसत सुन लेते रास्ता बदल देते ताकि पण्डित जी से मुलाकात ना हो और बेवजह की झंझट में ना फ़सना पड़े ।
पण्डित जी एक सूत्रीय कार्यक्रम बनाकर रियासत को खोजने में जुटे हुए थे पण्डित जी को रियासत अली से मुलाकात होने की संभावना को गांव वाले रियासत कि मदत कर समाप्त कर देते यदि पण्डित जी को पता लग जाता कि रियासत अली गांव के पूरब गए है जब पण्डित जी पूछते तो गांव वाले दक्षिण या पश्चिम बताते ।
पण्डित जी रियसत अली के साथ साथ गांव पूरे गांव वालों को अछूत मानने लगे या यूं कहें गांव वालों के लिए अछूत हो गए थे एकदम अलग थलग पड़ चुके थे।
पंडित सुबह शाम जब भी बाहर शौच आदि के लिए निकलते भगवान का नाम कम रियासत चिक का नाम अवश्य लेते औऱ उसकी परछाई ना पड़े यही भगवान से मांगते।
एक दिन शाम लगभग सात आठ बजे सर्दी की शाम या यूं कहें रात्रि को पण्डित शीलभद्र बाज़ार से लौट रहे थे बाज़ार जब पहुंचे और रियसत अली को मालूम हुआ कि पण्डित जी बाजार आये है तो उसे यकीन हो गया कि पण्डित जी उंसे अवश्य खोजेंगे रियासत अपनी नियमित दुकान से काफी दूर धंधा करने लगा ताकि पण्डित जी को बाज़ार में परेशानी ना हो।
रियासत मालूम था कि पण्डित शीलभद्र साल में कभी कभार ही बाज़ार आते है अतः क्यो उन्हें बेवजह फिर क्रोधित करते सामना करे।
शाम बाज़ार से लौटते समय पण्डित शीलभद्र आगे आगे चल रहे थे रियासत मिया पण्डित जी से कुछ दूर पीछे चल रहे थे जिसका अंदाज़ा पण्डित जी को नही था ।
जब पण्डित जी को पीछे किसी के आने का भान होता पण्डित जी पीछे मुड़कर देखते रियासत अली कहीं छिप जाते।
बाज़ार से गांव लगभग पांच किलोमोटर दूर था लगभग बाज़ार से दो किलोमीटर एव गांव से तीन किलोमीटर पहले सड़क के मध्य एका एक दो सांड आपस मे लड़ते हुए आ गए और जब सांडों का ध्यान पण्डित शील भद्र पर पड़ा तो साड़ों ने पण्डित शीलभद्र को बुरी तरह जख्मी कर दिया पण्डित जी लगभग मरणासन्न हो चुके थे ।
दूर से रियासत अली साड़ों का पण्डित जी पर आक्रमण देख रहे थे लेकिन कर भी क्या सकते थे?
बेचारे पण्डित जी को तो उसकी परछाई अपवित्र कर देती पण्डिय जी बुरी तरह घायल पीड़ा से कराह रहे थे रियासत पण्डित जी के गम्भीर अवस्था पर दूर खडा पश्चाताप के आंसू बहा रहा था उंसे यह समझ मे नही आ रहा था कि क्या करे ?
जिससे पण्डित जी को जान बच जावे कुछ देर बाद बगल गांव लोहगाजर के मिया शरीफ बाज़ार से लौट ही रहे थे कि उनकी नज़र रियासत अली पर पड़ी शरीफ ने रियासत अली से पूंछा यहाँ का कर रहे हो ?
रियासत ने पण्डित शीलभद्र कि तरफ़ इशारा करता बोला सांड ने बहुत बुरी तरह घायल कर दिया है
मिंया शरीफ बोले तू यहां खड़े खड़े का करी रहा है रियासत बोला चाचा जान पण्डित जी के ऊपर हमरी परछाई पड़ी जात है त अपने के शुद्ध करत हैं जब इन्हें हम उठाईके अस्पताल लइके जॉब त पण्डित जी त ठिक होखले के बादो मरिजहन ना चाचा ना हमारे मॉन के नाही बा।
मिंया शरीफ ने रियासत को कुरान और अल्लाह का वास्ता देते हुए इंसानियत को ही सबसे बड़ा मजहब बताया रियासत मियां हारी पाछी के पण्डित शीलभद्र का गोदी में उठायन और बाजार की तरफ चल पड़ें और ब्लाक के सामुदायिक स्वास्थ केंद्र पर लेकर पहुंचा ।
डॉ महंथ ने पण्डित शीलभद्र का गम्भीरता से जांच किया और रियासत को बताया कि पण्डित शीलभद्र के शरीर से खून बहुत निकल चुका है और सांड के सिंह से आंते बुरी तरह जख्मी हो विखर चूंकि है जिसके लिए ऑपरेशन करना पड़ेगा ।
रियासत तुम खून की व्यवस्था करो हम ऑपरेशन कि तैयारी करते है रियासत बोला डॉ साहब मैं कहा से व्यवस्था करूँगा मेरा ही खून ले लीजिए लेकिन जब पण्डित जी को होश आये तो यह मत बताएगा कि खून हमने दिया है ।
डॉ महंथ ने रियासत के खून के सेंपल की जांच किया पाया कि उसका ग्रुप पण्डित शीलभद्र के ग्रुप से मिलता है डॉ महंथ ने एक बेड पर पण्डित शील भद्र को लिटाया ऑपरेशन के लिए और दूसरे बेड पर रियासत को खून देने के लिए लगभग चार घण्टे के ऑपरेशन के बाद डॉ महंथ ने पण्डित शील भद्र के पेट को टांके लगाकर सील दिया ।
रात्रि के दो बजे रहे थे रियासत कुछ देर वही लेटा रहा और चार बजे भोर में जब डॉ महंत ने बता दिया कि पण्डित जी खतरे से बाहर है तो वह गांव को चल पड़ा।
इधर जब पण्डित शीलभद्र को होश आया तो उन्होंने पूछा हम कहाँ है हमे यहाँ कौन लाया डॉ महंत ने बताया आपको आपही के गांव के मियां रियासत अपने गोद मे लेकर आये थे आपकी हालत बहुत गम्भीर थी रियासत ने अपना खून भी आपको बचाने के लिए दिया जो अब आपकी रगों में बह रहा है ।
पण्डित जी को लगा कि उनके ऊपर हज़ारों घड़े पानी किसी ने उड़ेल दिया हो पुनः डॉ महंथ बोले पण्डित जी मैं डॉ अवश्य हूँ लेकिन जाती से डोम हूँ अब आप ही निर्णय करे इलाज डोम ने किया खून चिक ने दिया यह जीवन आपको सलामत चाहिए कि नही।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश ।।