नेह का दीपक
नेह का दीपक धरा द्वार पर,
आस की बाती विश्वाश का थाल
प्रियतम के कदमों की सुनी थाप।
दिप दिपा लों ने फैलाया उजास,
अब नहीं कर आलि मन उदास।
अब लगेंगे उजालों के भव्य मेले,
जिनसे प्रसृत होंगे किरणों के रेले। तिमिर का तो अब हो गयाअंत,
बह उठेगी खुशी की धारा अनंत।
धरा पर फैलते प्रकाश के पुंज,
मनो भूमि पर जैसे कलरव कुंज।
मौन अधरों पर गीत की है बयार,
नीरव पर विजित भाव का श्रृंगार।
सबको पाकर अब तो हो गई मग्न
तिरोहित हो उठासहसा ही उद्विग्न।रात का अवसान होगा तम हटेगा,
मालिन्य घटेगा, सहचर्य बढ़ेगा,।
नेह का दीप जलाकर रख दिया द्वार पर।