नेपोभाटिन
नेपोभाटिन
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आब बनब हम नेपोभाटिन ,
ककरो किछु नहिं सुनब अब हम ।
घर-अंगना पोछैत भरि दिनहिं ,
देह हमर थकुचायल अछि ।
बर्तन बासन करैत यौ सजना ,
हाथ पाइर खिआयल अछि ।
कानय बाजय सब देख लेलहुं ,
रुदाली बनिकेऽ अहां केऽ मनैलहुँ,
तैयौ किछु नहिं भेटल एहिठाम ।
आब बनब हम नेपोभाटिन,
बात अपन मनवाएब हम।
आब बनब हम नेपोभाटिन,
ककरो किछु नहिं सुनब आब हम।
मन करैत अछि, हमहुं पार्लर जैतहुँ,
मसाज, ब्लीच आ मेकअप करैतहुँ।
केश कटाए, गाले लट लटकैतहुँ ,
मेंहदी सजाएकेऽ हनीमून पर जेतहुँ।
ककरा सेऽ आश करब आब हम।
आब बनब हम नेपोभाटिन,
ककरो किछु नहिं सुनब अब हम ।
साँच-झूठ के खेआल नहिं राखब,
सहलहुँ बहुत कष्ट, एहिठाम हम।
सभहक लेल दुनु हाथ से लुटेलहुँ ,
किया बनब आब, भिखारि हम ।
लेब उधार सेऽ सजाएब जिन्दगी ,
दुआरे चारिपहिआ लगाएब हम ।
आब बनब हम नेपोभाटिन ,
ककरो किछु नहिं सुनब अब हम ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ३० /११ /२०२१
कृष्णपक्ष, एकादशी , मंगलवार ,
मोबाइल न. – 8757227201