नेता जी को याद आ रहा फिर से टिकट दोबारा- हास्य व्यंग्य रचनाकार अरविंद भारद्वाज
नेता जी को याद आ रहा
हास्य व्यंग्य रचना
फिर से हलचल तेज हुई है, ढूँढो कोई सहारा ।
नेता जी को याद आ रहा, पिछला टिकट दोबारा।।
पिछली बार टिकट की खातिर,चप्पल थी घिसवाई।
घर में खोला मुफ्त का ढ़ावा, पूरी खूब खिलाई।
दिन-भर सड़कों पर घूमा वो, फिरा था मारा मारा।
नेता जी को याद आ रहा,पिछला टिकट दोबारा।।
बूढों को टोपी पहनाते, हाथ में रखकर झण्डा।
पूरे दिन वो शोर मचाते, करते नया वो फण्डा।
फिर पैसों की भूख की खातिर, खा जाते वो चारा।
नेता जी को याद आ रहा, पिछला टिकट दोबारा।।
देते दिलासा करके वादा, हरदम साथ निभाऊँ।
छोटा भाई हूँ मैं आपका, काम सदा मैं आऊँ ।
बेटे को मैं दूँगा नौकरी, बनकर आज सहारा ।
नेता जी को याद आ रहा, पिछला टिकट दोबारा।।
त्यौहारों के नाम से उसने, भारी भीड़ जुटाई।
भीड़ में आगे चलकर उसने, अपनी रील बनाई।
हाईकमान को रील दिखाकर, फिर से आज पुकारा।
नेता जी को याद आ रहा, पिछला टिकट दोबारा।।
पहली योजना नेता जी ने, खाई खूब मलाई।
जनता को वो भूल गए थे, गाढ़ी करी कमाई।
ई डी पीछे पड़ी है उनके. माल कहाँ है सारा।
नेता जी को याद आ रहा, पिछला टिकट दोबारा।।
झूठ बोलकर मतदाता को, कैसे आज लुभाऊँ।
नेता जी चिन्तित है फिर से, टिकट मैं कैसे पाऊँ।
ढूँढें नए तरीके फिर से , बनूँ आँख का तारा ।
नेता जी को याद आ रहा, पिछला टिकट दोबारा।।
© अरविंद भारद्वाज