#कुंडलिया//नेता जी
आँधी आई सोच की , सोच गई पर दूर।
सत्य उड़ा है रूठ के , झूठ खिली जी पूर।।
झूठ खिली जी पूर , राजनीति बनी खोटी।
अपनी-अपनी चाल , सेंकते सब हैं रोटी।
जनता के सिर मार , रहे गिरगिट की बाँधी।
बहलाओ मन जीत , छोड़ चालाकी आँधी।
नेता झाड़ के बेर हैं , झड़काओ तुम आज।
जो हैं मीठे बेर जी , वो ही पहने ताज।।
वो ही पहने ताज , चुनो राहुल या मोदी।
सबक दिलाओ एक , देश गरिमा ले गोदी।
स्वार्थ बड़ी है भूल , इसी को पागल खेता।
माने साहिब देश , वही ख़ूब एक नेता।
अपनी भूल सुधार के , सजग बनो दमदार।
पाकर सत्ता राज को , बनो नहीं गद्दार।।
बनो नहीं गद्दार , भेद नहीं कहीं धारा।
सबको समझे एक , करे नेतृत्व हमारा।
खेद बनाए भेद , उसे दो माला जपनी।
देना उसको वोट , शक्ति बनता जो अपनी।
#आर.एस. ‘प्रीतम’