नूतन रूप धर के तो देख !
करो खोटी यादों का तर्पण
तोड़ो निकृष्ट वादों का दर्पण
जिसे भी जो चाहे फिर कर दो
तन ,मन, धन ,गगन अर्पण I
जला बेबसी की तस्वीरें
लिख नई तू तकदीरें
गढ़ एक मूर्त वफ़ा की और
काम आयेंगी तदबीरें I
कभी ये मन जो हो विचलित
रच इक विश्व शुभ कल्पित
पतझड़ के मौसम को मान कर स्थायी
न हो लज्जित , न रह वंचित I
सृजन कर महल वो सतरंगी स्वप्निल
हो जिसमें हर इक दुआ शामिल
रूप नूतन धर के तो देखो !
होगी असीम ख़ुशी हासिल I