निशाचार
निशाचार दुख हैं ,दर्द हैं
हर कोने में दरिद्रता के व्यापारी हैं ।
जीवन के मायने ही बिगाड़ दिए,
आशा के संसार उखाड़ लिए।
काले धुंधले रातों में,
निशाचार की भयानक भीड़ है।
माँगते हैं लोग सुख और समृद्धि,
पर निशाचार ढीठ हैं ।
कहानियां सुनाई जाती हैं,
केवल भूत -पिशाच की !
पर हमें यह भूलना नहीं है ये ,
कि निशाचार है इंसान ही !
उठो, जागो , लड़ो निशाचारों से,
हर दिन को संवारना है।
दुख से मुक्ति का मार्ग है धुंधला पर
पर हार नहीं मानना है।
निशाचार को हराने की राह,
लक्ष्य बनाकर चलना है।
निशाचार से लड़ना है हमें निरंतर ये जंग,
सकारात्मक सोच से करना है ,इस दुष्चक्र को भंग,