निगाह-ए-यास कि तन्हाइयाँ लिए चलिए
निगाह-ए-यास कि तन्हाइयाँ लिए चलिए
ख़ुशी का एक नया आसमाँ लिए चलिए।
छिपे हुए कुछ दर्दों कि दास्ताँ है यह
ज़हन कि सुब्ह में रंगीनियाँ लिए चलिए।
ग़मों कि दिल में ये वामांदगी लिए बैठा
नियाज़-नामा का कारवाँ लिए चलिए।
क़रार-ए-जाँ को वस्ल-ए-क़ू छोड़कर आए
गुबार-ए-दिल को नई सम्तियाँ लिए चलिए।
न जाने कितने ही मौसम बदल चुके है हम
कि संग अपने भी कुछ तल्ख़ियाँ लिए चलिए।
फ़रोग़-ए-शम्’अ को इस तीरगी मे ले आओ
नज़र से जो हुई गुस्ताख़ियाँ लिए चलिए।
सफ़र मे इतना भी आसां नहीं था ये सबकुछ
मता-ए-जीस्त मे फिर नोकियाँ लिए चलिए।