तुम्हारी निगाहें
निगाहों में तुम्हारी जानम नशा ही कुछ ऐसा है
जाता हुआ मुसाफिर भी एक पल को ठहरता है
रुक गया जो एक पल पाने को झलक तुम्हारी
साथ ताउम्र निभाने को मन उसका मचलता है
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश