ना वह हवा ना पानी है अब
नित रोज ही नई कहानी है अब
ना वह हवा ना वह पानी है अब
लोग भटक रहे हैं भ्रम के सायों में
ना वह बचपन ना वो जवानी है अब
ना वो हवा…………
किसी को फिक्र नहीं है किसी की
किसी को चाह नहीं रही जिंदगी की
दौड़ते हैं सुबह से शाम तक सब ऐसे
जैसे दो ही पल की जिंदगानी है अब
ना वो हवा…………
प्रेम की भाषा ही सब भूल रहे हैं
नशे में जाने क्यों लोग झूल रहे हैं
संस्कारों पर पानी फिर गया है ऐसे
हो चली नैतिकता की रवानी है अब
ना वो हवा…………
हर एक दिल में है ये कशिश कैसी
ये इंसानियत पर आज दबिश कैसी
“V9द” समेट रहे हैं अरमानों को ऐसे
जैसे मौत ही आखिरी निशानी है अब
ना वो हवा………..