नारी
?? नारी ??
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बहुत हुआ नारी पे भाषण
बन्द करो भाषणबाजी
तुम लगते हो कड़वे करैला
वह उत्साह नयी ताजी।
नहीं उसे सम्मान अपेक्षित
नही करे अपमान उपेक्षित
नहीं सहारा तुमसे इच्छित
बीन तेरे ही वह प्रशिक्षित
करो नहीं उपकार तू उसपे
रही ना अब अबला नारी
तुम लगते हो कड़वे करैला
वह उत्साह नयी ताजी।
सत्य सनातन देवी शिक्षा
नही उसे तेरी प्रतिक्षा
ईश्वर से उसे मिली है दिक्षा
नव जीवन की देती भिक्षा
करो नहीं अपमानित तुम
वह सृजन सृष्टि की प्यारी
तुम लगते हो कड़वे करेला
वह उत्साह नयी ताजी।
ममता की परिचायक नारी
हर पूजन के लायक नारी
पुष्प सुगंधित क्यारी नारी
अन्न भरा एक थाली नारी
नारी ह्रेय ना रही उपेक्षित
नारी प्रेम भरी पांति
तुम लगते हो कडवे करेला
वह उत्साह नयी ताजी।
वह त्रिनेत्रा का तीजा दृष्टि
वह प्रेम की मधुरिमा वृष्टि
यह ईश्वर की सृजन सृष्टि
भक्तों की है निर्मल भक्ति
ममता की यह निर्मल धारा
इससे है इस जग की ख्याति
तूम लगते हो कड़वे करैला
यह उत्साह नयी ताजी।
…………..✍
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण “बिहार”