पागल तो मैं ही हूँ
पागल तो मैं ही हूँ ,
जब तू मुझको चाहती ही नहीं,
तेरा प्यार तो कोई और ही है,
तेरा मसीहा- ओ- ख्वाब कोई और है,
और मैं मानता हूँ तुमको,
अपना प्यार और अपना दिल।
पागल तो मैं ही हूँ ,
क्योंकि तू बता चुकी है कई बार,
अपनी सूरत और दौलत का घमण्ड,
उड़ा चुकी है कई बार मेरा मजाक,
और मैं तुमको कहता हूँ ,
अपनी इज्जत और अपनी शान।
पागल तो मैं ही हूँ ,
कि लुटा रहा हूँ तुम पर,
अपनी खुशियाँ और दौलत,
बहा रहा हूँ मैं तुम्हारे लिए,
अपने आँसू और पसीना,
और कर रहा हूँ आबाद तेरा चमन,
जबकि तेरी मंजिल तो और ही है।
पागल तो मैं ही हूँ ,
कि जला रहा हूँ मैं,
तुम्हारे जीवन में चिराग,
और कर रहा हूँ सबसे मैं
तुम्हारी तारीफ बिना कुछ सोचे,
जबकि नहीं मिली है मुझको,
तुमसे खुशी और सुकून कभी भी।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)