Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Jun 2023 · 3 min read

*मॉं : शत-शत प्रणाम*

मॉं : शत-शत प्रणाम
➖➖➖➖➖➖➖➖
प्रथम पाठशाला है मॉं, बच्चे को पाठ पढ़ाती
सुगढ़ नागरिकता के पथ पर, आगे उसे बढ़ाती
विद्यालय विद्वान बनाते, मॉं गढ़ती इंसान है
मॉं से बढ़कर जग में कोई, होता नहीं महान है

वास्तव में जीवन की पहली पाठशाला मॉं की गोद में ही शिशु को प्राप्त होती है। फिर तो जीवन-भर वह मॉं के आचरण से ही सारे सद्गुणों का पाठ पढ़ता है । उसके जीवन पर सब प्रकार से मां के सद्विचारों की छाप होती है। वह जो कुछ भी होता है, सब कुछ मां की ही कृति कहलाता है ।
जहॉं एक ओर शिशु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी मां की ही रचना है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से बल्कि कहना चाहिए कि चरित्र निर्माण की दृष्टि से वह मां की ही रचना होता है । जैसी मां होती है, वैसे ही बच्चे बन जाते हैं। अगर हम यह जानना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति की मॉं कैसी होगी, तो हमें उस व्यक्ति के जीवन चरित्र को पढ़ना पर्याप्त है।
मॉं के संस्कार ही व्यक्ति को एक निश्चित आकार में ढालते हैं । मां के विचार धीरे-धीरे व्यक्ति के ऊपर अपनी छाप छोड़ते हैं। वह छाप परिपक्व होती रहती है और फिर व्यक्ति के स्वभाव में रच-बस जाती है । अनेक बार मां सदुपदेश के रूप में कुछ नहीं कहती है, लेकिन जब बच्चा मां के समीप रहता है तो उसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
बाल्यावस्था तो पूरी तरह मां की गोद में ही बीतती है। उसके बाद भी लंबा समय मां के दिशानिर्देशों में कार्य करते हुए ही बीतता है। बिना कुछ कहे मां अपने कार्य-व्यवहार से अपनी संतान को सदुपदेश देने का कार्य करती है। कई बार तो जो प्रभाव लंबे-चौड़े प्रवचनों से नहीं पड़ता, वह मां की कार्यशैली से बच्चों पर दिखाई पड़ने लगता है । अगर मां कर्मठ है, तो बिना कुछ बताए ही संतान में कर्मठता का भाव आ जाता है । अगर मां खानपान में सदाचारी है, तो उसकी संतान किसी न किसी रूप में इस सद्वृत्ति को धारण अवश्य करती है। परोपकार की भावना भी बच्चे अपनी मां से ही सीखते हैं। इसका अर्थ केवल लंबे-चौड़े दान से नहीं है । यह परोपकार की वृत्ति तो जीवन की एक शैली होती है, जो प्रतिदिन के क्रियाकलापों में झलकती है। बच्चे उसे मां से सीखते हैं और अपने जीवन में आत्मसात कर लेते हैं। फिर उनकी एक आदत बन जाती है। फिर वह इस संसार में दूसरों के दुखों को दूर करने में ही धर्म का मूल मानते हैं।
रामचरितमानस में लिखा है:-
परहित सरिस धर्म नहिं भाई
पर-पीड़ा सम नहिं अधमाई
अर्थात दूसरों की भलाई से श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं होता तथा दूसरों को कष्ट पहुंचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं होता।
धर्म की सारी परिभाषाएं व्यक्ति को मां के आचरण की सीख से ही प्राप्त होती हैं। रामचरितमानस में ही एक अन्य स्थान पर लिखा है:-
धरमु न दूसर सत्य समाना
अर्थात सत्य के समान कोई दूसरा धर्म नहीं होता। तात्पर्य यह है कि सत्य का पालन करना ही धर्म है । अब प्रश्न आता है कि बच्चा सत्य के पालन करने की प्रवृत्ति को कहां से सीखेगा ? उत्तर सीधा और सटीक है। बालक और बालिकाऍं सत्य बोलने की आदत को अपनी मां से ही सीखते हैं । संसार में जिस प्रकार की सत्यवती माताएं होती हैं, उसी प्रकार से उनकी संताने सत्य का व्रत लेते हुए संसार को सुंदर बनाने के लिए स्वयं को समर्पित कर देते हैं।
छत्रपति शिवाजी का निर्माण उनकी माताजी जीजाबाई के आचरण से ही हुआ था । जीजाबाई उन्हें अच्छी-अच्छी बातें बताती थीं। प्रेरणा देती थीं। इन सब से शिवाजी का एक सच्चा देशभक्त, वीर और चारित्रिक दृढ़ता पर आधारित व्यक्तित्व निर्मित हो सका।
कुल मिलाकर मॉं के अनंत ऋण हैं। मॉं के अनेक उपकार हैं। हम जो कुछ भी हैं, सब प्रकार से मॉं का प्रतिबिंब ही हैं। हमारे जीवन का प्रत्येक सकारात्मक पक्ष मां के प्रति बारंबार आभार व्यक्त कर रहा है। मां की स्मृतियॉं व्यक्ति को सबल बनाती हैं और उन मूल्यों के प्रति दृढ़ता उत्पन्न करती हैं जो उसने मां से सीखी हैं। मां अजर और अमर चेतना का नाम है। वह देह के रूप में जब तक विद्यमान रहती है, हमारा प्रत्यक्ष मार्गदर्शन करती है और जब वह अपनी पंचतत्व से बनी हुई देह को विश्वरूप में विलीन कर देती है, तब भी वह आत्मा की एक शक्ति के रूप में हमारी चेतना से कभी विस्मृत नहीं होती। मॉं को बारंबार प्रणाम !
—————————————-
लेखक : रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
284 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
*अच्छी आदत रोज की*
*अच्छी आदत रोज की*
Dushyant Kumar
कोई फैसला खुद के लिए, खुद से तो करना होगा,
कोई फैसला खुद के लिए, खुद से तो करना होगा,
Anand Kumar
प्यारी तितली
प्यारी तितली
Dr Archana Gupta
....एक झलक....
....एक झलक....
Naushaba Suriya
घर छूटा तो बाकी के असबाब भी लेकर क्या करती
घर छूटा तो बाकी के असबाब भी लेकर क्या करती
Shweta Soni
मोदी जी का स्वच्छ भारत का जो सपना है
मोदी जी का स्वच्छ भारत का जो सपना है
gurudeenverma198
ये कटेगा
ये कटेगा
शेखर सिंह
"दिल का हाल सुने दिल वाला"
Pushpraj Anant
मेरी कलम
मेरी कलम
Dr.Priya Soni Khare
मोबाइल फोन
मोबाइल फोन
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
फितरत
फितरत
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
शिक्षा तो पाई मगर, मिले नहीं संस्कार
शिक्षा तो पाई मगर, मिले नहीं संस्कार
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
💐प्रेम कौतुक-174💐
💐प्रेम कौतुक-174💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
"रफ-कॉपी"
Dr. Kishan tandon kranti
भले उधार सही
भले उधार सही
Satish Srijan
कर ले प्यार
कर ले प्यार
Ashwani Kumar Jaiswal
साँवरिया तुम कब आओगे
साँवरिया तुम कब आओगे
Kavita Chouhan
मेरी एजुकेशन शायरी
मेरी एजुकेशन शायरी
Ms.Ankit Halke jha
चाहत के ज़ख्म
चाहत के ज़ख्म
Surinder blackpen
शीर्षक - खामोशी
शीर्षक - खामोशी
Neeraj Agarwal
"रात यूं नहीं बड़ी है"
ज़ैद बलियावी
' समय का महत्व '
' समय का महत्व '
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
नन्हे बाल गोपाल के पाच्छे मैया यशोदा दौड़ लगाये.....
नन्हे बाल गोपाल के पाच्छे मैया यशोदा दौड़ लगाये.....
Ram Babu Mandal
#शेर-
#शेर-
*Author प्रणय प्रभात*
*आते हैं जग में सदा, जन्म-मृत्यु के मोड़ (कुंडलिया)*
*आते हैं जग में सदा, जन्म-मृत्यु के मोड़ (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
राम नाम अतिसुंदर पथ है।
राम नाम अतिसुंदर पथ है।
Vijay kumar Pandey
अनेक को दिया उजाड़
अनेक को दिया उजाड़
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
कुछ खामोशियाँ तुम ले आना।
कुछ खामोशियाँ तुम ले आना।
Manisha Manjari
प्यार/प्रेम की कोई एकमत परिभाषा कतई नहीं हो सकती।
प्यार/प्रेम की कोई एकमत परिभाषा कतई नहीं हो सकती।
Dr MusafiR BaithA
Loading...