Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Sep 2021 · 4 min read

नारी हृदय के पारखी” -शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ।

आलेख

शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को कौन नहीं जानता ? आप बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। आपका जन्म प. बंगाल के हुगली जिले के देवानंदपुर गांव में 15 सितंबर 1876 में हुआ। शरतचंद्र के नौ भाई-बहन थे।

विश्वविख्यात बंगला उपन्यासकार और महान् कथाशिल्पी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जीवन के विविध यथार्थ पहलुओं को शब्दों का जामा पहनाने वाले कुशल चितेरे था।

आपकी कहानियों और उपन्यास की अधिकांशतः प्रमुख पात्र नारी ही थीं।
अपनी कहानियों में आपने नारी के शोषण, उसके हृदय की कोमल भावनाओं, दमित आशाओं,उसकी कुंठित अभिलाषाओं, अतृप्त आकांक्षाओं, उसके किंचित सपनों, उसकी घुटती महत्त्वकांक्षाओं, दबे कुचले व्यक्तित्व का अति सूक्ष्म व वास्तविक चित्रण और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।

शरतचंद्र जीवन के यथार्थवाद को लेकर साहित्य क्षेत्र में उतरे थे। यह लगभग बंगला साहित्य में नवीन प्रयोग था।जहाँ एक ओर शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने लोकप्रिय उपन्यासों एवं कहानियों के माध्यम से
पतिता,विधवा,पीड़ित, दबी-कुचली और प्रताड़ित नारी की पीड़ा को स्वर दिया वहीं दूसरी ओर तत्कालीन प्रचलित सामाजिक रूढ़ियों भीषण प्रहार किया था। अपने लेखन के द्वारा शरतचंद्र ने समाज को लीक से हटकर सोचने को बाध्य किया था।

शरतचंद्र की प्रतिभा उपन्यासों के साथ-साथ उनकी कहानियों में भी देखने योग्य है। उनकी कहानियों में भी उपन्यासों की तरह मध्यवर्गीय समाज का यथार्थ चित्र अंकित है। शरतचंद्र प्रेम कुशल के चितेरे थे। शरतचंद्र की कहानियों में प्रेम एवं स्त्री-पुरुष संबंधों का सशक्त चित्रण हुआ है। इनकी कुछ कहानियाँ कला की दृष्टि से बहुत ही मार्मिक हैं। ये कहानियाँ शरत के हृदय की सम्पूर्ण भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।

चूँकि शरद्चंद्र की समस्त कहानियाँ स्वयं के बाल्यकाल व युवावस्था में निज संपर्क में आये स्वजनों मित्रों के जीवन से प्रेरित होकर लिखी गईं हैं यही कारण है कि वे सब कहानियाँ हमें अपने दैनंदिनी जीवन का एक भाग सी प्रतीत होती हैं।

शरतचंद्र के मन में नारियों के प्रति बहुत सम्मान था वे नारी हृदय के सच्चे पारख़ी थे।
शरतचंद्र भारत के सार्वकालिक सर्वाधिक लोकप्रिय तथा सर्वाधिक अनूदित लेखक हैं।

शरत की लेखनी पररवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे जिनमें पंडित मोशाय, बैकुंठेर बिल, मेज दीदी, दर्पचूर्ण, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास, बाम्हन की लड़की, विप्रदास, देना पावना आदि प्रमुख हैं।

आपकी लेखनी पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का पर गहरा प्रभाव पड़ा। सर्वप्रथम “बासा” अर्थात् “घर “नाम से आपने एक उपन्यास लिखा लेकिन वह किन्हीं कारणों से अप्रकाशित रहा।

‘शरतचंद्र’ बांग्ला के उन श्रेष्ठ साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने बांग्ला साहित्य की धारा को बिल्कुल नई दिशा दी। बांग्ला साहित्य में जितनी जल्दी शरतचंद्र को ख्याति मिली, उतनी जल्दी शायद ही किसी और साहित्यकार को मिली हो। ‘देवदास’, ‘परिणीता’ जैसी सुपरहिट फ़िल्में शरतचंद्र के उपन्यासों पर ही आधारित थीं! उन्होंने अपने कथा साहित्य से केवल बंगाल के समाज के सामने ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज के सामने स्त्री जीवन से सम्बंधित विभिन्न प्रश्नों को सजगता के साथ शब्दों में उकेर कर रख दिया था l

समाज के जर्जर रिवाजों से उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. उनके फक्कड़पन के कारण लेखक विष्णु प्रभाकर ने उनपर ‘आवारा मसीहा’ किताब लिखी जो शरतचंद्र के जीवन की प्रामाणिक जानकारी पर आधारित है।

उनका मानना था कि “औरतों को हमने जो केवल औरत बनाकर ही रखा है, मनुष्य नहीं बनने दिया, उसका प्रायश्चित स्वराज्य के पहले देश को करना ही चाहिए।”

शरतचंद्र की स्त्री जीवन की परिकल्पना बहुत ही प्रगतिशील है। उन्होंने स्त्री को केवल स्त्री बने रहने से अलग मनुष्य बनने के लिए प्रेरित किया।

शरतचंद्र की लेखनी में स्त्री जीवन के विविध पहलू यत्र-तत्र प्रतिबिंबित होते हैं। यही शरत साहित्य का वैशिष्ट्य है। उनकी कहानियों का एक स्त्री चरित्र आदर्शवादिता का प्रतिरूप है तो दूसरी कहानी समाज में पतित और कलंकित समझी जाने वाली चरित्रहीन स्त्री के उर की पीड़ा को उकेरा है। अपने सृजन में सभी प्रकार के स्त्री चरित्रों को चित्रित करना शरतचंद्र की गहन स्त्री संवेदना का परिचायक है।

वे अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में समय-समय पर ऐसी स्त्रियों के संपर्क में आते रहे जो सभ्य समाज की दृष्टि में अवश्य पतिता व त्याज्य थीं किन्तु समस्त मानवीय गुणों की प्रतिमूर्ति थीं। उनका यह मानना था कि जब तक स्त्री को समाज में पूर्ण मुक्ति और समान अधिकार नहीं मिल जाता तब तक देश का उत्थान नहीं होने वाला। आज बंगाली समाज में अगर शरतचंद्र इतने स्वीकार्य हैं तो इसी कारण की बंगाल की नारी को आज भी शरत की रचनाओं में अपने जीवन की झलकियाँ मिल जाती हैं।
शरत के उपन्यासों के कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। कहा जाता है कि उनके पुरुष पात्रों से उनकी नायिकाएँ अधिक ताक़तवर हैं।
उनका समग्र साहित्य मूलतः हर वर्ग की नारी के हृदय की संवेदनाओं, उनके जीवन के विविध पक्षों, उनके उत्थान, प्रगति का समर्थन का प्रतीक है।

उस युग में उन्होंने ‘नारी का मूल्य’ जैसा गंभीर निबंध रचकर विश्व की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में नारी के शोषण के इतिहास को बताकर समाज में व्याप्त कुसंगतियों को प्रंश्नांकित किया है। और भारतीय साहित्य को ही नहीं बल्कि विश्व साहित्य को मार्ग दर्शन दिया हैंl नारी के अंतर्द्वंद्व को जितने सूक्ष्म रूप में उन्होंने प्रकट किया है वैसा स्त्रियों द्वारा लिखे गए साहित्य में भी प्रकट होना कठिन है। एक पुरुष रचनाकार होते हुए भी उन्होंने स्त्रियों के अन्तर्द्वन्द्व को बहुत ही सूक्ष्मता से पकड़ा है और रचना में बखूबी उसकी प्रस्तुति भी की है।

भारतीय साहित्य में आपकी विशिष्ट प्रतिभा के लिए आपका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। आपका अभूतपूर्व साहित्यिक योगदान सदा अक्षुण्ण रहेगा और आपका नाम भारतीय साहित्य में सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
आज 15 सितंबर को नारी स्वातंत्र्य के प्रबल पक्षधर और नारी प्रगति के प्रणेता महान लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जी को कोटिशः नमन!

रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 1360 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

*बादल छाये नभ में काले*
*बादल छाये नभ में काले*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जीने को ज़िन्दगी के हक़दार वही तो हैं
जीने को ज़िन्दगी के हक़दार वही तो हैं
Dr fauzia Naseem shad
कत्थई गुलाब-शेष
कत्थई गुलाब-शेष
Shweta Soni
*वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है:
*वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है:
Ravi Prakash
संवेदनहीन
संवेदनहीन
अखिलेश 'अखिल'
A Departed Soul Can Never Come Again
A Departed Soul Can Never Come Again
Manisha Manjari
क्या पाना है, क्या खोना है
क्या पाना है, क्या खोना है
Chitra Bisht
कुछ अजीब है यह दुनिया यहां
कुछ अजीब है यह दुनिया यहां
Ranjeet kumar patre
बोलो जय जय सिया राम
बोलो जय जय सिया राम
उमा झा
‘प्रकृति से सीख’
‘प्रकृति से सीख’
Vivek Mishra
ये राम कृष्ण की जमीं, ये बुद्ध का मेरा वतन।
ये राम कृष्ण की जमीं, ये बुद्ध का मेरा वतन।
सत्य कुमार प्रेमी
अनजान राहें अनजान पथिक
अनजान राहें अनजान पथिक
SATPAL CHAUHAN
दिलाओ याद मत अब मुझको, गुजरा मेरा अतीत तुम
दिलाओ याद मत अब मुझको, गुजरा मेरा अतीत तुम
gurudeenverma198
खिलजी, बाबर और गजनवी के बंसजों देखो।
खिलजी, बाबर और गजनवी के बंसजों देखो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
ध्येय बिन कोई मंज़िल को पाता नहीं
ध्येय बिन कोई मंज़िल को पाता नहीं
Dr Archana Gupta
*बेवफ़ा से इश्क़*
*बेवफ़ा से इश्क़*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
मेरे प्रिय पवनपुत्र हनुमान
मेरे प्रिय पवनपुत्र हनुमान
Anamika Tiwari 'annpurna '
बढ़ती तपीस
बढ़ती तपीस
शेखर सिंह
ना तो कला को सम्मान ,
ना तो कला को सम्मान ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
"वफादार"
Dr. Kishan tandon kranti
ब्रह्म तत्व है या पदार्थ या फिर दोनों..?
ब्रह्म तत्व है या पदार्थ या फिर दोनों..?
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
नशा छोडो
नशा छोडो
Rajesh Kumar Kaurav
कृष्ण हो तुम
कृष्ण हो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दुर्योधन की पीड़ा
दुर्योधन की पीड़ा
Paras Nath Jha
4089.💐 *पूर्णिका* 💐
4089.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
..
..
*प्रणय प्रभात*
थोड़ा सा आसमान ....
थोड़ा सा आसमान ....
sushil sarna
सुनो न..
सुनो न..
हिमांशु Kulshrestha
परीक्षा का भय
परीक्षा का भय
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
महाप्रयाण
महाप्रयाण
Shyam Sundar Subramanian
Loading...