नारी नीर
कुछ लोग’ चाहतें हैं,
हम औरतें पानी की तरह रहें,
आयतन कुछ भी हो,
पर हर आकार में ढ़लें,
कोई पत्थर भी मारे, तो भी लहरायें,
सारे रंग में रंग जाये,
जितना मतलब हो, उतना ले कर
फिर फेंक दिये जायें,
इसलिये हम गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी बनें
हमेशा पवित्र, शुद्ध और शीतल !
अगर ये नहीं हैं,
तब हम कुंए में कैद, तलाबों में रूके हुये,
या नालियों में पड़े रहें,
ये चिन्हित जगह है,
पर भुल जाते हैं ‘कुछ लोग ‘
हम आकाश में भी हैं विकट, विकराल