नारी नारायणी
दिन भर बैठी आस लगाए
प्रियतम मन ही मन मुस्काए
बरतन घस संगीत बजाए
कपडों से बतियाती जाए
ज्यों दफतर को निकले साजन
तन्हा लागे सब धर आंगन
टीवी में कैसे मन उलझाए
सुनसानी को ही पीती जाए
सुंदर दिखे सदा धर अपना
खुद सुंदर खिला चेहरा भी रखना
नियम रोज बनाती जाए
पर सब खुश फिर भी ना रह पाए
बच्चे बुड्ढों सबकी मां
सबके दुख को हरती हां
सेहत मे वो धुलती जाए
माथे पर वो शिकन ना लाए
तन मन से वो थक कर बोझल
टूटी झुकी ना कुछ कह पाए
शाम ढले जब साजन धर आए
उस पे अपनी भड़ास लुटाए