नारी का अस्तित्व ( महिला दिवस पर विशेष ” कविता”)
नारी हूं, नारायणी हूं मैं,
ममता-रूपी सागर हूं मैं ।
काव्य-संगीत और सौरभ-सौंदर्य ,
की अनुपम-प्रतिमा हूं मैं ।
शक्ति का ही दिया हुआ
शांति का ही एक रूप हूं मैं,
शीतल छाया की आशा हूं मैं,
मनोहर-प्रेम की परिभाषा हूं मैं ।
नारियों के धैर्य की सीमा और,
शुद्ध-आत्मा से उठी पुकार हूं मैं ।
सत्ताधारियों के लिए दया-धर्म का संदेश हूं मैं,
दुनिया की पलटकर दशा,
हर मुसीबतों का कर सकती हूं अंत मैं ।
प्रजा की सोई हुई अभिलाषा को
आशा-रूपी दिपक से जगा सकती हूं मैं।
साहित्य पीडिया आबाद विशाल-मंच पर,
कुदरत की अनमोल-सौगात हूं मैं ।