नारा है या चेतावनी
दुष्कर्म के गहरे जख्म और दर्द के कारण देश धधक रहा था। पिछले कुछ वर्षों में यौन हिंसा ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थीं। रेप और गैंग रेप कम होने का नाम नहीं ले रहे थे। इन हालातों ने बच्चियों, युवतियों और महिलाओं को गहरी निराशा और दहशत में डाल दिया था।
ऊपर से देश की न्याय व्यवस्था ऐसी कि अपराधियों को दण्ड देने में सालों लग जाते। अब आक्रोश से भरी हुई जनता सड़कों पर उतर कर दुष्कर्मियों को तत्काल दण्ड देने के लिए उतारू तक होने लगी।
सच तो यह है कि आज ‘बेटी बचाओ’ जैसे वाक्य पढ़कर समझ नहीं आता कि यह कोई नारा है या चेतावनी?
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।