नाम नमक निशान
बीते युग का सैनिक लड़ता
कृपाण तीरऔर भाला से।
एक से केवल एक ही भिड़ता,
आंखों में भर कर ज्वाला से।
संचार वक्त के सैनिक हम
मेरे लड़ने का कोई तोड़ नहीं।
दुश्मन को ऐसे हनते हैं,
फिर लगता टांका जोड़ नहीं।
गुत्थम गुत्था का युद्ध नहीं
अब सूझ बूझ का खेल है सब।
तन मन से जो प्रशिक्षित है,
दुश्मन पर जय पाये वो अब।
हथियार दक्ष संचार दक्ष
साइबर और यंत्र हम माहिर।
रण कौशल नीति बदलते नित
बिन दुश्मन को करके जाहिर।
अभ्यास में स्वेद बहाते हम
रण विद्या अग्नि में जलते हैं।
तकनीक नई करते इज़ाद
जैसा युग वैसे चलते हैं।
है ‘नाम निशान नमक’ का ऋण
यह देश लगे सबसे प्यारा।
‘खुद से पहले मेरा देश सदा’,
सेना का सदैव ये नारा।
सतीश सृजन, लखनऊ