नाकाम पिता
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
अपने बच्चों की नज़रों में बेदाम हूँ
मेरी तालीम में कुछ कमी रह गई
वक़्त की आँख में बस नमी रह गई
परवरिश पे मैं ख़ुद अपनी इल्ज़ाम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
फ़र्ज़ अपनी तरफ़ से निभाए बहुत
ग़ैरमुमकिन सितम भी उठाए बहुत
अपनी हालत पे हैरान हूँ किसलिए
दर्द क्यूँ तुमको अपने सुनाए बहुत
मैं न कुछ कर सका मैं ही बदनाम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
हाँ ग़लत बात पे डाँट देता हूँ मैं
सारे गुण दोष भी छाँट देता हूँ मैं
अपने माता पिता से मिले जो मुझे
संस्कारी रतन बाँट देता हूँ मैं
इसलिए मैं ही मुजरिम सरेआम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
मेरे बच्चो! ये जीवन तो गुलदान है
ये विधाता का अनमोल वरदान है
इसको गुस्से की आँधी में मत झोंकना
प्यार है तो ये जीवन भी आसान है
तुमसे कहता यही मैं सुबह शाम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
माँ तुम्हारी जो मन की छुपाए तो क्या
बोझ वो पूरे घर का उठाए तो क्या
उसने मेरे तुम्हारे लिए जो किया
वो बताए तो क्या न बताए तो क्या
काम करती है वो मैं तो बस नाम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
जो भी करना हो माँ बाप करते हैं सब
बिन कहे अपने ही आप करते हैं सब
उनके बच्चे सफ़ल और सुरक्षित रहें
इसलिए पुण्य और पाप करते हैं सब
किन्तु मैं अपने भीतर का संग्राम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
अब तुम्हारे सिवा कोई चारा नहीं
तुम ही हो और कोई सहारा नहीं
मेरे बच्चो! तुम्हारी ही ख़ातिर हैं हम
तुमसे बढ़ के कोई और प्यारा नहीं
मैं तो अपनी ही करनी का अंजाम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
पास मेरे जो तुम रोज़ आते नहीं
मेरे उपदेश तुमको सुहाते नहीं
तुमसे दौलत नहीं बस समय चाहिए
मेरा हक़ क्यूँ मुझे तुम दिलाते नहीं
अपने जैसे पिताओं का पैग़ाम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ
तुमको ख़ुशियाँ मिलें,कामयाबी मिले
बाद मेरे भी तुमको नवाबी मिले
कोई मुश्किल जो आए तो हल कर सको
तुमको जीवन के ताले की चाबी मिले
तुम किरण भोर की और मैं शाम हूँ
मैं पिता हूँ मगर आज नाकाम हूँ