नाकामयाब होना
बड़ा सताता है ख्वाबों का सिर्फ ख्वाब होना।
हसरतों का बरसात के मौसम में आफताब होना।
तमाम कोशिशों के बाद भी कुछ हासिल न होना,
कितना अजीब होता है न नाकामयाब होना।
चाहकर भी कुछ कर न पाने की लाचारी।
कुछ अपनो का कहना कुछ दुनियादारी।
किस्मत का रंक होना और खुशियों का नवाब होना।
कितना अजीब होता है न नाकामयाब होना।
ये दौर भी यार बड़ी मुश्किलों का दौर है।
सुकून बहुत दूर है और आफ़ते सिरमौर हैं।
खुद के जख़्मों पर बेतुकी बातों का तेजाब होना।
कितना अजीब होता है न नाकामयाब होना।
-सिद्धार्थ पाण्डेय